नासा-इसरो की बनाई सैटेलाइट 'निसार' अब तैयार, कब होगी लॉन्च?, जानें इसकी खासियत

नासा-इसरो की बनाई सैटेलाइट 'निसार' अब तैयार, कब होगी लॉन्च?, जानें इसकी खासियत

चेन्नई। नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) एक संयुक्त पृथ्वी-अवलोकन मिशन है जो नासा और इसरो के बीच सहयोग की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है। नासा और इसरो के संयुक्त उपक्रम से बना निसार सैटेलाइट अब तैयार है। यह सैटेलाइट जमीन और बर्फ की सतहों का अधिक विस्तार से अध्ययन करने में मदद करेगा। भारत भेजने से पहले, निसार के उन्नत रडार उपकरणों को दक्षिणी कैलिफोर्निया में नासा के जेपीएल में इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ, जेपीएल निदेशक लॉरी लेशिन और अमेरिका और भारत के गणमान्य व्यक्तियों और मिशन टीम के सदस्यों की उपस्थिति में मीडिया को दिखाया गया।

परिसर के बाहर नासा के निसार परियोजना प्रबंधक फिल बरेला और इसरो के निसार परियोजना निदेशक सीवी श्रीकांत ने औपचारिक रूप से ताजा नारियल फोड़ा, जो कि भारतीय परंपरा विशेष रूप से दक्षिण भारत की आम परंपरा है जो शुभ अवसरों को चिह्नित करती है और कार्य के सही रूप से पूरा होने की आशा का प्रतीक है। एसयूवी आकार के पेलोड निसार को भारत के बेंगलुरु में यू आर राव उपग्रह केंद्र के लिए 9,000 मील (14,000 किमी) की हावई यात्रा के लिए एक विशेष कार्गो कंटेनर में लोड किया गया, जिसका सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 2024 के प्रक्षेपण की तैयारी में अंतरिक्ष यान बस में विलय किया जाएगा।

जेपीएल निदेशक लॉरी लेशिन ने कहा, “यह मिशन पृथ्वी और हमारी बदलती जलवायु को बेहतर रूप से समझने के लिए हमारी साझा यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। निसार पृथ्वी की परत, बर्फ की चादरों और पारिस्थितिक तंत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा। अभूतपूर्व परिशुद्धता प्रदान करके, निसार समुदायों में नई समझ और सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगा। इसरो के साथ हमारा सहयोग इस बात का उदाहरण है कि जब हम एक साथ जटिल चुनौतियों से निपटते हैं तो क्या संभव होता है।” इसरो के अध्यक्ष ने कहा,“आज हम नासा और इसरो की अपार वैज्ञानिक क्षमता को पूरा करने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़े हैं, जिसकी कल्पना नासा और इसरो ने आठ वर्ष से ज्यादा समय पहले एक साथ काम करने के दौरान की थी।”

सोमनाथ ने कहा, “यह मिशन एक विज्ञान उपकरण के रूप में रडार की क्षमता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन होगा और हमें पृथ्वी की गतिशीलता और बर्फ की सतहों का पहले से कहीं अधिक विस्तार से अध्ययन करने में सहायता प्रदान करेगा।” निसार को 2024 की शुरुआत में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के एसएचएआर रेंज से 747 किमी की ऊंचाई पर ध्रुवीय कक्षा में भेजा जाएगा। निसार मिशन पर नासा की वेबसाइट के अनुसार, इस मिशन के लिए इसरो अपने सबसे भारी स्वदेशी रॉकेट जीएसएलवी-एमकेII/एलवीएम-3 का उपयोग करेगा। निसार मिशन पृथ्वी के बदलते पारिस्थितिक तंत्र, गतिशील सतहों और बर्फ के द्रव्यमान को मापेगा और बायोमास, प्राकृतिक संकटों, समुद्री स्तर और भूजल की जानकारी प्रदान करेगा और कई अन्य अनुप्रयोगों का समर्थन करेगा। 

निसार वैश्विक स्तर पर पृथ्वी और बर्फ से ढकी सतहों का निरीक्षण करेगा, आधार-रेखा तीन वर्ष मिशन के लिए औसतन प्रत्येक छह दिनों में पृथ्वी का नमूना लेगा। निसार प्रत्येक 12 दिनों में वैश्विक भूमि बायोमास, पौधों से कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का खाका तैयार करेगा। प्राकृतिक और मानवीय दोनों व्यवहारों के कारण पृथ्वी की सतह लगातार बदल रही है और मानव के लिए प्राकृतिक खतरों का जोखिम बढ़ रहा है। समुद्री स्तर में परिवर्तन, जमीन धंसने, सुनामी, ज्वालामुखी, भूकंप और भूस्खलन जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आबादी बढ़ रही है। ये खतरे पहले से ही प्रत्येक वर्ष हजारों मौतों और अरबों डॉलर के नुकसान का कारण बनते हैं।

 इन प्राकृतिक खतरों को समझने के लिए पूरे खतरे को मापने के साथ-साथ बेहतर पूर्वानुमान और अल्पीकरण की आवश्यकता होती है जिसमें निसार की मदद ली जाएगी। निसार का वैश्विक और तीव्र कवरेज आपदा के लिए प्रतिक्रिया देने में अभूतपूर्व अवसर प्रदान करेगा, कम समय में आपदाओं से पहले और बाद में अवलोकन करने के साथ नुकसान में कमी लाने और आकलन के लिए डेटा प्रदान करेगा। प्राकृतिक आपदा हमारे देश के लिए लगातार खतरा बना रहेगा इसलिए निसार का वैश्विक और तीव्र कवरेज व्यापक क्षति में कमी लाने और इसकी सीमा का आकलन करने के लिए अभूतपूर्व योगदान देगा।

हमारे ग्रह के सतह की गतिशीलता का पता लगने से गहराई में होने वाली प्रक्रियाओं के बारे में जानने में मदद मिलेगी। चूंकि निसार का डेटा खुली रूप में उपलब्ध होगा इसलिए वैज्ञानिक, सामाजिक और वाणिज्यिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पूरी दुनिया में अधिक से अधिक नीति निर्माता उनका उपयोग करने में सक्षम होंगे, जो अबतक अन्य डेटा का उपयोग करते हैं जो ज्यादा सुलभ नहीं हैं। ताजे पानी और ऊर्जा स्रोतों का विज्ञान-आधारित प्रबंधन और भंडारण हमें इन संसाधनों का ज्यादा कुशलतापूर्वक और स्थायी उपयोग करने में सक्षम बनाएगा। नासा को एल-बैंड रडार के साथ कम से कम तीन वर्ष के वैश्विक विज्ञान ऑपरेशन की आवश्यकता होती है जबकि इसरो को भारत और दक्षिणी महासागर में निर्दिष्ट लक्षित क्षेत्रों पर एस-बैंड रडार के साथ पांच वर्ष के परिचालन की ऑपरेशन होती है। 

यह भी पढ़ें-  त्रिपुरा चुनाव के लिए टीएमसी ने जारी किया घोषणा-पत्र, ‘विकास के बंगाल मॉडल’ का वादा