अयोध्या : राम मंदिर के गर्भगृह की चौखट का हुआ पूजन, डीएम पत्नी संग बने यजमान
मकराना के सफेद मार्बल से निर्मित चौखट को पूजन के बाद यथास्थान रखवाया गया
अमृत विचार,अयोध्या। श्रीराम जन्मभूमि में निर्माणाधीन मंदिर में रविवार को गर्भगृह की दहलीज (ड्योढ़ी) के पत्थर का विधिपूर्वक पूजन किया गया। मकराना के सफेद मार्बल से निर्मित चौखट को पूजन के बाद यथास्थान रखवाया गया। अष्टकोणीय गर्भगृह में लगने वाले मकराना मार्बल के स्तम्भ पहले ही खड़े कर दिए गये हैं। गर्भगृह में आठ स्तम्भ लगने थे। इन स्तम्भों की निर्धारित ऊंचाई 19 फिट छह इंच है।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने बताया कि गर्भगृह के चौखट का पत्थर तैयार होने के बाद पूजन किया गया और पत्थरों को यथास्थान रखने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी है। उन्होंने बताया कि गर्भगृह में अंदरूनी दीवार, छत व फर्श से लेकर चौखट तक सभी मकराना के मार्बल से ही निर्मित होंगे। उन्होंने बताया कि फर्श व छत में खूबसूरत मीनाकारी भी की जाएगी। इस पूजन के यजमान जिलाधिकारी व ट्रस्ट के पदेन न्यासी नितीश कुमार व उनकी पत्नी थी। ट्रस्ट महासचिव के अलावा न्यासी डॉ. अनिल मिश्र, महंत दिनेन्द्र दास, विमलेन्द्र मोहन मिश्र, मंदिर निर्माण प्रभारी गोपाल राव, संघ के चीफ परियोजना प्रबंधक जगदीश आफले, इं. सहस्त्र भोजनी, एसपी सुरक्षा पंकज कुमार, एलएण्डटी के चीफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर वीके मेहता, टीईसी के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर बिनोद कुमार शुक्ल व अन्य शामिल रहे।
मुख्य द्वार का वास्तु दोष से मुक्त होना जरूरी
उधर, इस पूजन के आचार्यों में शामिल कारसेवकपुरम स्थित वेद विद्यालय के प्रधानाचार्य इंद्रदेव मिश्र ने बताया कि मंदिर अथवा घरों में दहलीज का बहुत महत्व है। शास्त्र के अनुसार दहलीज का नित्य पूजन करना चाहिए। सभी मंदिरों में भगवान के साथ दहलीज की नित्य आरती होती है। इसी तरह घरों में प्रतिदिन मुख्य द्वार पर सायंकाल दीप जलाने की परम्परा है। उन्होंने बताया कि यहीं से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाएं घर में प्रवेश लेती हैं। वास्तु शास्त्र के हिसाब से नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त रखने के लिए मुख्य द्वार को वास्तु दोष से मुक्त होना जरूरी है। इससे मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। दहलीज पर बनाए गए शुभ मांगलिक चिह्न घर की सुख और समृद्धि में वृद्धि करते हैं।
हीरा जड़ित मशीन से लिए देवशिलाओं के सैंपल
राम मंदिर में प्रतिष्ठित होने वाले रामलला के विग्रह के लिए नेपाल से लाई गयी देवशिलाओं का परीक्षण भी शुरू हो गया है। इन देवशिलाओं के परीक्षण के लिए पहले से ही मूर्तिकारों की टीम यहां मौजूद थी। दो फरवरी को नेपाल से आई देवशिलाओं को रामसेवकपुरम में रखवाए जाने के बाद दर्शन के लिए भीड़ उमड़ पड़ी थी। इसके चलते एक दिन की प्रतीक्षा के बाद दोपहर में दर्शन बंद कराकर सैपलिंग कराई गयी। इन मूर्तिकारों ने 14 टन व 26 टन की दोनों देवशिलाओं पर हीरा जड़ित मशीन से कट लगाकर सैंपल के रूप में अलग-अलग टुकड़ा निकाला। उधर, जयपुर राजस्थान से आए मूर्तिकार विष्णु शर्मा ने बताया कि पत्थरों की जांच का उद्देश्य उनका स्वभाव जानना होता है कि वह सख्त हैं अथवा नरम। पत्थर जब तक नरम नहीं होगा मूर्तियों को आकार नहीं दिया जा सकता और उनमें हाव-भाव प्रदर्शित करना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त पत्थरों में आद्रर्ता की माप भी की जाती है। यदि पत्थरों में नमी सोखने की प्रवृत्ति होती होगी तो एक निर्धारित समय के बाद वह अंदर से भुरभुरा हो जाएगा और नष्ट होने लगेगा।
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