रामपुर: आजम-अब्दुल्ला की सियासत हासिए पर, पिता-पुत्र पर डेढ़ सौ मुकदमों की लटकी तलवार

Amrit Vichar Network
Published By Priya
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अदालतों में विचाराधीन कई मुकदमे ऐसे जिनमें आजीवन कारावास तक की सजा का है प्राविधान, कौन संभालेगा विरासत

(अखिलेश शर्मा) रामपुर, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति के कद्दावर नेता कहे जाने वाले आजम खां कानूनी शिकंजे में ऐसे फंसे हैं कि सियासत के हासिए पर आ गए हैं। तीन साल की सजा होने पर पहले खुद की विधायकी गंवा चुके आजम खां को अब एक और झटका लगा है जिसमें दो साल की सजा होने पर उनके बेटे अब्दुल्ला की स्वार क्षेत्र की विधायकी भी चली गई है। पिता-पुत्र पर अभी करीब डेढ़ सौ मुकदमों की तलवार लटकी है, इन मुकदमों में कई ऐसी संगीन धाराओं के केस भी हैं जिनमें आजीवन कारावास की सजा तक का प्राविधान है। पिता-पुत्र के अयोग्य ठहराए जाने से छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई है, ऐसे में अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि उनकी राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा। 

  • सजा होने से आजम खां के बाद अब अब्दुल्ला की भी विधायकी रद हुई 
  • फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में भी अब्दुल्ला की विधायकी चली गई थी

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और यूपी विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक रहे आजम खां का लंबा राजनीतिक सफर रहा है। 45 साल के सियासी सफर के दौरान आजम खां ने कई बार उतार चढाव देखे। लेकिन, बीते तीन सालों में आजम खां की मुश्किलें इस कद्र बढ़ती गईं कि 45 साल का राजनीतिक सफर थम सा गया। भड़काऊ भाषण मामले में कोर्ट ने 27 अक्‍टूबर को आजम खां को तीन साल की सजा सुनाई। 28 अक्‍टूबर को उनकी विधानसभा सदस्‍यता खत्‍म कर दी थी। आजम खां रामपुर विधानसभा सीट से दसवीं बार चुनाव जीते थे। लेकिन, 13 फरवरी को मुरादाबाद के छजलैट प्रकरण में आजम खां के साथ उनके बेटे अब्दुल्ला को भी दो साल की सजा सुनाई गई।

लिहाजा अब्दुल्ला की भी विधायकी रद कर दी गई। आजम और अब्दुल्ला पर करीब डेढ़ सौ मुकदमे विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं। इनमें कई मुकदमों में ऐसी धाराएं हैं जिनमें आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान भी है। अब सवाल यह है कि पिता-पुत्र के छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराए जाने के बाद राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा। क्योंकि उनकी पत्नी डा. तजीन फात्मा पर भी 33 मुकदमे विचाराधीन हैं। उनका बड़ा पुत्र अदीब खां राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते हैं। बहू सिदरा अदीब ने पिछले दिनों कुछ दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन बाद में वह चुप हो गईं। 

1977 में लड़ा था पहली बार चुनाव
सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां ने 1977 में पहली बार रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि, तब वह चुनाव हार गए थे। लेकिन, इसके बाद 1980 में वह चुनाव जीत गए और पहली बार विधायक बने। इसके बाद कभी ऐसा नहीं हुआ, जब आजम खां किसी न किसी सदन के सदस्य न रहे हों। हालांकि, वह 1996 में कांग्रेस के अफरोज अली खां से चुनाव हार गए थे। तब उन्हें सपा की तरफ से राज्यसभा का सदस्य बना दिया था। यह पहली बार है जब आजम खां को कोर्ट से तीन साल कैद की सजा मिलने के बाद उनका निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया गया है। 45 साल लंबा यह सियासी सफर तीन साल में रूक गया। वहीं अब छजलैट प्रकरण में खुद के साथ विधायक बेटे अब्दुल्ला को भी दो साल की सजा होने से उसकी विधानसभा सदस्यता भी खत्म हो गई है। 

देश के इतिहास का पहला मामला
किसी पिता-पुत्र की विधानसभा सदस्यता इस तरह कोर्ट से सजा होने पर चले जाना देश का पहला केस होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता डा. सैयद एजाज अब्बास नकवी कहते हैं कि अब्दुल्ला की विधायकी दूसरी बार कानूनी शिकंजे में फंसने पर गई है। इस मामले में प्राविधान यह है कि सुप्रीम कोर्ट ही अगर इस मामले में अपील हो तो बरी करता है तभी अयोग्यता समाप्त हो सकती है। लेकिन इसके बाद सवाल यह भी है कि आजम खां और अब्दुल्ला पर दर्ज करीब 150 मामले और न्यायालय में विचाराधीन हैं। इनमें कई मामले संगीन धाराओं के हैं जिनमें कम से कम आजीवन कारावास की सजा का प्राविधान है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण दो जन्म प्रमाण-पत्र और शत्रु संपत्ति पर कब्जे का मामला भी है।   

सपा सरकार में आजम खां की बोलती थी तूती
 सपा नेता आजम खां की प्रदेश में तूती बोलती थी। प्रदेश में जब-जब सपा की सरकार बनी, तो कैबिनेट मंत्री बने। सपा सरकार में उनका रूतबा मुख्यमंत्री के बाद सबसे अधिक रहता था। उनके फैसले पर उंगली उठाने की किसी की हिम्मत नहीं हुआ करती थी। यहां तक अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार के दौरान आजम खां की भैंसे चोरी हो गईं थीं। जिसके बाद पुलिस अफसरों के हाथ पांव फूल गए थे। पुलिस ने 24 घंटे के भीतर उनकी भैंसे बरामद कर ली थीं। यह मुद्दा भी भाजपा ने खूब उठाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में खुद आजम खां की भैंसों का कई बार जिक्र किया था। लेकिन, वक्त का पहिया घूमा और आजम खां अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं।

छात्र नेता के रूप में शुरू किया सियासी सफर
सपा नेता आजम खां ने अपना सियासी सफर छात्र नेता के रूप में शुरू किया। वह जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत थे, तो वहां विद्यार्थी संघ के सचिव थे। 1976 में आजम खां जनता दल में शामिल हो गए। इस दौरान वे कई बार जेल भी गए। इमरजेंसी के दौरान आजम खां मीसा कानून के तहत गिरफतार किए गए थे। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1977 में लडा था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। लेकिन, 1980 के चुनाव में जीत गए और पहली बार विधायक बने। 1996 को छोड़कर आजम खां कभी चुनाव नहीं हारे।

आजम खां ने हमेशा झूठ और नफरत की राजनीति की, उनकी जुबान हमेशा गलत चली, उन्होंने कभी भी महिलाओं से सम्मान और आदर से बात नहीं की। पाप का घड़ा भर गया था। उनको इसी की सजा मिलती जा रही है। बेटे का फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाकर एक झूठ बोलने के लिए उन्हें सौ झूठ बोलने पड़ रहे हैं। न्यायालय पर हमें पूरा भरोसा है, उन्हें इसी की सजा मिल रही है और मिलती रहेगी। जिस जनता जनार्दन का वोट हासिल करके वे जीतते चले आ रहे थे, उसी जनता का उन्होंने हर कदम पर अपमान किया था। -आकाश सक्सेना, भाजपा विधायक, रामपुर

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