अयोध्या में संगीत का चमकता नक्षत्र "मानस दास शरभ''
अयोध्या, अमृत विचार। अयोध्या! यह नाम आध्यात्मिकता से जितना ओतप्रोत है, उतना ही वर्तमान में विकास और आधुनिकता का केंद्र बन गया है। इसी बीच अयोध्या की एक ऐसी शख्सियत को कुछ दिनों से सोशल मीडिया के माध्यम से और लाखों ज़ुबां के चर्चाओं के माध्यम से जाना जा रहा है जिसे अयोध्या संगीत परंपरा का संवाहक और जनमानस के इकलौते लाडले मानस दास शरभ के नाम से जाना जाता है।
अयोध्या के संगीत आकाश में अनेक नक्षत्र उदीयमान हुए जिन्होंने अपनी कला और विद्या के द्वारा जनमानस को आनंद, अर्थ और जीविकोपार्जन दिया। ब्रह्मर्षि मानस दास अयोध्या में संगीत का अलख जगा रहे हैं। और अपने शिष्य समुदाय के साथ अनेक प्रतिष्ठित मंचों पे (भारत ही नहीं विदेश में भी) अयोध्या संगीत की रस धारा को प्रवाहित करते नजर आते हैं।
आप अयोध्या के संगीत को अयोध्याधिपति भगवान श्रीराम के सुपुत्रद्वय लवकुश की संगीपरंपरा से प्रभावित और संप्रेषित मानते हैं। अनेकानेक संगीत के हस्ताक्षर गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, मानस दास ने सर्वप्रथम अयोध्या में स्थित श्री कनक भवन बिहारी-बिहारिणी सरकार को अपना संगीत समर्पित किया। आप जितनी कुशलता से ध्रुपद, धमार, खयाल, तिरवट, चतुरंग, टप्पा, ठुमरी गाते हैं, उतनी ही कुशलता से आधुनिक संगीत लोकगीत, फिल्मी गाने और पश्चिमी संगीत का भी गायन करते हैं।
मानस महाराज अपने संगीत को श्रीराम की तरह ही इस लोक और परलोक दोनों के लिए उपयोगी समझते हैं। इसलिए वो कहते हैं कि मेरा संगीत जन-मन-रंजन भी है और भव-भय-भंजन भी है। उनकी एक बंदिश इस समय बहुत ही समसामयिक लगती है... अरे मन समझि समझि पग धरिये।
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