सबसे बड़ा आयातक

सबसे बड़ा आयातक

रूस और यूक्रेन के युद्ध को एक साल पूरा हो चुका है। बदली वैश्विक परिस्थितियों में दुनिया की सभी बड़ी शक्तियां अपनी सैन्य ताकत का फिर से आकलन कर रही हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने रूस और यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए बड़ी तैयारी शुरू कर दी है।

भारत ने चीन के किसी भी हमले से निपटने के लिए महाप्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। स्वीडन स्थित थिंक-टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) द्वारा सोमवार को जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत एक बार फिर हथियारों और सैन्य उपकरणों के दुनिया के सबसे बड़े आयातक के रूप में उभरा है, जो ऐसे सभी अंतर्राष्ट्रीय आयातों का 11 प्रतिशत है। सऊदी अरब, कतर, ऑस्ट्रेलिया और चीन अगले चार बड़े वैश्विक आयातक हैं।

अमेरिका, रूस और फ्रांस क्रमशः 40 प्रतिशत, 16 प्रतिशत और 11 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी के साथ दुनिया के तीन सबसे बड़े निर्यातक हैं। रूस भारत का प्रमुख हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है और सभी भारतीय आयातों का 45 प्रतिशत आपूर्ति करता है। 

फ्रांस ने भारत की 29 प्रतिशत आयात जरूरतों को पूरा किया जबकि अमेरिका ने 11 प्रतिशत उपकरणों की आपूर्ति की। भारत ने इजराइल, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भी आयात किया। ऐसे में सवाल उठता है कि सुरक्षा जरूरतों की आपूर्ति में आत्मनिर्भरता की बजाय दूसरे देशों पर निर्भर हो जाने से क्या हमें कुछ भी नुकसान नहीं उठाना पड़ता है।

जबकि अधिकतर रक्षा सौदों के मामलों में यही होता आया है कि हथियार निर्माता देश हमें अपनी मनमानी शर्तों पर पुरानी रक्षा प्रौद्योगिकी पकड़ा देते हैं जिसका हमें बाद में खामियाजा भुगतना पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण के साथ कमियों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है।

सरकार सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण सुधार के उद्देश्य से सेना, नौसेना और वायु सेना की क्षमताओं को एकीकृत करना चाहती है। केंद्र सरकार ने हथियारों और सैन्य उपकरणों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन और खरीद पर जोर दिया है।

उधर सोमवार को रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने राज्यसभा में बताया कि सरकार ने 2024-25 तक 35 हजार करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात सहित 1,75,000 करोड़ रुपये के रक्षा विनिर्माण का लक्ष्य रखा है। उम्मीद है कि सैन्य-उपकरणों के संदर्भ में हमारी आत्मनिर्भरता की रक्षार्थ, रक्षा मंत्रालय और उद्योग जगत शीघ्र ही अपनी ठोस योजनाएं साकार करेंगे। अगर हमारे वैज्ञानिक ठान लें तो सैन्य उपकरणों की आत्मनिर्भरता का सपना साकार किया जा सकता है।