बरेली: मोहर्रम त्योहार नहीं, इबादत का महीना- अहसन मियां

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बरेली, अमृत विचार। मोहर्रम का चांद नजर आते ही इस्लामिक नए साल का आगाज हो जाएगा। मगर इस बार कोरोना महामारी के चलते जलसे और जुलूस निकालने पर पाबंदी है। मोहर्रम को लेकर दरगाह आला हजरत से अपील हुई है कि जुलूस और जलसों पर खर्च होने वाली रकम को गरीब और जरूरतमंदों के इलाज …

बरेली, अमृत विचार। मोहर्रम का चांद नजर आते ही इस्लामिक नए साल का आगाज हो जाएगा। मगर इस बार कोरोना महामारी के चलते जलसे और जुलूस निकालने पर पाबंदी है। मोहर्रम को लेकर दरगाह आला हजरत से अपील हुई है कि जुलूस और जलसों पर खर्च होने वाली रकम को गरीब और जरूरतमंदों के इलाज में खर्च करें।

चंद दिनों बाद ही इस्लामी नया साल 1442 हिजरी शुरू हो जाएगा। दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि दरगाह के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने मोहर्रम की जानकारी देते हुए बताया कि कि मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है। यह इबादत का महीना है।

इसलिए घरों पर जिक्र ए शहीदे कर्बला, महफिल ए मिलाद, कुरानख्वानी का आयोजन शासन की गाइडलाइन के हिसाब से ही करें। मुफ्ती अहसन मियां ने आगे बताया कि इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत को खिराज (श्रद्धांजलि) पेश करने के लिए गरीबों व जरूरतमंदों को खाना खिलाएं।

घरों में कुरआन ख्वानी कराकर कोरोना से खात्मे की दुआ करें। गैर शरई काम से परहेज करें। इसके अलावा नौ या दस, दस या 11 मोहर्रम पर रोजा रखें। बेहतर ये है कि इस महामारी के वक़्त में जलसे और महफिलों पर खर्च होने वाली रकम से गरीबों व जरूरतमंद मरीजों का इलाज करवा दें, यही कर्बला के शहीदों को सच्ची खिराज-ए-अकीदत होगी।

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