हड़ताली बिजली कर्मचारियों को High Court से लगा तगड़ा झटका, एक माह का वेतन-पेंशन रोका

हड़ताली बिजली कर्मचारियों को High Court से लगा तगड़ा झटका, एक माह का वेतन-पेंशन रोका

प्रयागराज। यूपी में अपनी मांगों को लेकर हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का एक माह का वेतन/ पेंशन रोकने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह उन लोगों को एक प्रकार से चेतावनी देने वाली कार्यवाही है, जो कानून के राज को हतोत्साहित करना चाहते हैं।

मालूम हो कि बिजली कर्मचारियों की 72 घंटे की हड़ताल से आम लोगों को हुई परेशानी को लेकर हाईकोर्ट के अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष अर्जी दाखिल कर ही यह मामला उठाया था। मामले की सुनवाई कर रही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने कहा कि इससे पहले कि कोर्ट दोषी कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करके नुकसान की वसूली का आदेश करे। नुकसान का सही आकलन होना जरूरी है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा है, जहां नुकसान हुआ है, साथ ही उन सभी कर्मचारी यूनियन व कर्मचारियों की सूची देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति को हड़ताल करने में सहयोग दिया, जिससे हड़ताल से हुए नुकसान के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सके। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कर्मचारी यूनियन पर किसी मुद्दे को लेकर चर्चा, विचार-विमर्श या बैठक करने पर रोक लगाना कोर्ट का उद्देश्य नहीं है। ना ही सरकार और कर्मचारियों के बीच वार्ता पर किसी प्रकार की रोक है।

इस संबंध में न्यायालय दोनों पक्षों का हलफनामा दाखिल होने और कर्मचारी नेताओं की परेशानियों और सुविधाओं पर विचार करने के बाद अंतिम आदेश देगी। इससे पहले भी हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश दिए थे। इसके साथ ही हड़ताल ना करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर कर्मचारी मोर्चा के पदाधिकारियों को तलब भी किया था, लेकिन आदेश के अनुपालन में कोई उपस्थित नहीं हुआ। ना ही कोई हलफनामा दाखिल किया गया।

इस पर न्यायालय ने सभी पदाधिकारियों को जमानती वारंट जारी कर दिया। बिजली कर्मचारियों ने राज्य सरकार द्वारा हड़ताल पर रोक लगाए जाने के बावजूद कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए हड़ताल की। भविष्य में हड़ताल न करने के लिए कहा। इसके अलावा कोर्ट ने बिजली कर्मचारियों को यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में इस प्रकार का कार्य ना करें, जो न्यायालय को हड़ताली कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने के लिए विवश करें। निर्दोष जनता को दोबारा ऐसी परेशानी का सामना ना करना पड़े। अस्पताल, बैंक जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित ना की जाए।

कोर्ट ने संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए मजबूरी में उन्हें हड़ताल करना पड़ा। कोर्ट ने इस पर कहा कि जीवन में कुछ ऐसे क्षेत्र होते हैं, जहां काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल के बारे में सोच भी नहीं सकते, क्योंकि उससे आवश्यक सेवाएं बाधित होती हैं। मांगों को बातचीत प्रदर्शन या किसी अन्य रास्ते से पूरा करने का प्रयास किया जा सकता है। निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम जनता का जीवन पंगु बना देने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती है। मौजूदा मामले की आगामी सुनवाई 24 अप्रैल को सुनिश्चित की गई है।

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