बरेली: मालदार करदाताओं के लिए नियम ताक पर..असंभव काम भी संभव

टैक्स की व्यवस्था पारदर्शी नहीं, सरकारी नहीं प्राइवेट व्यक्ति के अधीन है टैक्स साफ्टवेयर

बरेली: मालदार करदाताओं के लिए नियम ताक पर..असंभव काम भी संभव

बरेली, अमृत विचार। नगर निगम के टैक्स विभाग में मालदार करदाता को राहत पहुंचाने के लिए नियम ताक पर रख दिए जाते हैं, अगर टैक्स ज्यादा आ गया हो तो उसे भी ठीक कर दिया जाता है, मगर आम करदाता निगम को टैक्स देना और बिल ठीक कराना चाहे तो उसे दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं।

टैक्स अफसर साल में 11 माह खामोश रहते हैं। मार्च के महीने में वे टैक्स वसूली को सक्रिय हो जाते हैं। कार्रवाई का डर दिखाकर करदाताओं से टैक्स वसूल कर खुद ही पीठ थपथपा लेते हैं। यही वजह है कि एक जोन में 16 सौ करोड़ के बकायेदार हो गए हैं। नगर निगम की देनदारी ज्यादा है, लेकिन वसूली उतनी नहीं है।

नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स बताती हैं कि लोग म्युटेशन नहीं कराते हैं और बिल बढ़ता रहता है। जबकि वास्तविकता यह है नाम परिवर्तन कराने में भी लोग परेशान हो जा रहे हैं। नाम परिवर्तन कराने में लंबा समय लग जाता है। कई बार वर्षों गुजर जाते हैं। जबकि 45 दिन का समय निर्धारित है। अपनी संपत्ति का नाम परिवर्तन कराने के लिए लोग अब भी परेशान हो रहे हैं। कई मामले तय समय के बाद भी लंबित हैं।

डराकर जमा करा लिया ज्यादा टैक्स, पीड़ित परेशान
पिछले साल जोन चार के कर निर्धारण अधिकारी ने मांगेराम नाम के करदाता की एक दुकान पर 13 लाख का बिल भेज दिया। निवर्तमान महापौर डा. उमेश गौतम ने खुलकर कहा था कि टैक्स विभाग के अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। मामले की जांच हुई तो अधिकारी ने अपनी बात सही करने के लिए छोटी सी दुकान की हर तरफ से जांच करा डाली, सड़क को नाप डाला फिर भी दुकानदार का बिल 13 लाख नहीं पहुंच पाया। दुकानदार को डराकर दुकान सील करने की धमकी देकर छह लाख रुपया जमा करा लिया गया। अब दुकानदार ज्यादा जमा किया बिल निगम से मांग रहा है तो निगम एक्ट का हवाला दे रहा है। जाहिर है परेशान दुकानदार कोर्ट की शरण लेगा लेकिन एक साल से किसी जिम्मेदार अधिकारी ने गलत बिल जारी करने वाले उस अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं की।

रामपुर रोड पर एक मालदार करदाता के प्रतिष्ठान का कर निर्धारण करने में भी तत्कालीन मुखिया से लेकर क्लर्क स्तर तक इतने गंभीर हो गये कि गलत काम को भी करने में किसी की कलम नहीं हिचकी। मामला दबा दिया गया है। कुछ दिन पूर्व एक करदाता को परेशान करने के उद्देश्य से गृह के बजाए उसके घर को कामर्शियल बता दिया। वह भी निगम के चक्कर लगाता रहा।

1.45 लाख भवनों में से 35 फीसदी से ही वसूली
सूत्र बताते हैं कि निगम में केवल 35 फीसदी भवनों से वसूली हो पाती है। पूरे साल बकायेदारों से संपर्क नहीं किया जाता है। इसके अलावा टैक्स का बिल भी नहीं पहुंच पाता है। इस वजह से भी वसूली नहीं हो पाती है। कुछ जोन तो यहां पर ऐसे हैं, जहां कोई कागज भेजा जाता तो वह भी गायब हो जाता है।

क्या कहते हैं जानकार
निगम नियमों के जानकार राजेश तिवारी एडवोकेट बताते हैं कि नगर निगम में ज्यादातर काम एक्ट के विरुद्ध अफसर मनमानी तरीके से करते हैं। टैक्स भरने में छूट देने का आदेश प्रमुख सचिव भी नहीं कर सकते हैं। इसके लिए निगम के एक्ट 172-173 में संशोधन करें। कैबिनेट से पास करे, इसके बाद भी यह हो सकता है। निगम अपने लंबित मामलों को लोक अदालत में नहीं ले जाता, जो लोग ले भी जाते हैं तो निगम लोक अदालत का आदेश नहीं मानता और हाईकोर्ट चला जाता। ऐसे में गरीब करदाता परेशान होता है।

टैक्स व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। नगर आयुक्त इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही हैं- महातम यादव, सीटीओ।

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