विधि आयोग ने विसंगति दूर करने के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता के उप-नियम में संशोधन की सिफारिश 

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Published By Om Parkash chaubey
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नई दिल्ली। विधि आयोग ने अदालतों, अधिवक्ताओं, वादियों और आम जनता की सुविधा के लिए एक विसंगति को दूर करने के वास्ते दीवानी प्रक्रिया संहिता के एक उप-नियम में संशोधन की सिफारिश की है। दीवानी प्रक्रिया संहिता, ‘1908 के आदेश 7 के नियम 14 (4) में संशोधन की तत्काल आवश्यकता' रिपोर्ट इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार को सौंपी गई थी।

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न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले आयोग ने 18 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आदेश 7 के नियम 14 के उप-नियम (4) में वादी के गवाहों से जिरह का उल्लेख है। इसने कहा कि आदेश 7 के नियम 14 के उप-नियम (4) में उल्लिखित "वादी के गवाह" शब्द को "प्रतिवादी के गवाह" के रूप में सही करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में कहा गया कि "एक वादी, साक्ष्य अधिनियम की धारा 154 में प्रदत्त व्यवस्था को छोड़कर, ऐसे प्रश्न नहीं रख सकता, जिन्हें उसके स्वयं के गवाहों से जिरह के लिए रखा जा सकता है। इसमें कहा गया कि इस तरह, आदेश 7 के नियम 14 के उप-नियम (4) में विसंगति स्पष्ट है। आयोग ने कहा कि उसका मानना है कि आदेश 7 के नियम 14 के उप-नियम (4) को "वादी के गवाहों" शब्द के लिए "प्रतिवादी के गवाह" शब्द प्रतिस्थापित कर इसे संशोधित करने की आवश्यकता है।

कानून मंत्री किरेन रीजीजू को रिपोर्ट सौंपते हुए अपने पत्र में न्यायमूर्ति अवस्थी ने कहा कि 22वें विधि आयोग की सुविचारित राय है अदालतों, वकीलों, वादकारियों और आम जनता की सुविधा के लिए जल्द से जल्द विधायी संशोधन के माध्यम से विसंगति का समाधान किया जाए। विधि आयोग ने स्वत: संज्ञान से इस विषय-वस्तु को विचारार्थ लिया है। 22वें विधि आयोग द्वारा सरकार को सौंपी गई यह पहली रिपोर्ट है। आयोग जटिल कानूनी मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है। 

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