Interview: सतीश महाना का विधानसभा में एक साल बे-मिसाल, अमृत विचार से बोले- नवाचार से सदन को दिया नया स्वरूप
सतीश महाना का विधानसभा में एक साल बे-मिसाल।
सतीश महाना ने कहा कि सदन वर्ष 1958 वाली से नहीं, बल्कि नई नियमावली से चलेगा। कहा कि सत्तादल और विपक्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायकों का सम्मान होगा। सदन में विधायकों का जन्मदिन मनाने की परंपरा शुरू हुई है।
[महेश शर्मा]
सतीश महाना, बस नाम ही काफी है। कानपुर से आठ बार के विधायक, कई बार मंत्री रहे और 18वीं विधान सभा के निर्विरोध अध्यक्ष 62 साल के महाना का नाम सूबे की राजनीति में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। विधान सभा अध्यक्ष के रूप में उनका एक साल का कार्यकाल बेमिसाल गिना जा रहा है। विधान सभा में नये विधान रचकर और लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए लीक से हटकर उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसने बदलते समय के साथ यूपी विधानसभा को स्मार्ट और डिजिटल पहचान दी है। विधासभा को पेपरलेस बनाने की बात हो, महिला विधायकों के लिए विशेष सत्र का आयोजन या सदन में नेता सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष की तनातनी को ‘कूल’ करना अथवा विधायक को लाठियों से पीटने वाले छह पुलिस कर्मियों को सदन में अदालत लगाकर सजा देने जैसी पहल हर मामले में महाना की चर्चा चौतरफा है। वर्तमान में वह ई-लाइब्रेरी, आईआईएम और आईआईटियंस को बुलाकर विधान मंडल प्रबंधन के गुर सिखाने वाली कक्षाएं शुरू कराने, विशेषज्ञों द्वारा संयुक्त सत्र संबोधन की नयी परंपरा डालने की दिशा में काम कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से हुई बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं...
सवाल- विधानसभा में नया विधान शुरू करने का विचार आपके मस्तिष्क में कैसे आया?
जवाब- देखिए, जब मुझे जानकारी मिली कि मैं पक्ष-विपक्ष की राय से विधानसभा का अध्यक्ष चुना जा सकता हूं, तभी यह ठान लिया था कि कुछ ऐसा नया करूंगा कि यूपी विधानसभा का परचम पूरे देश में लहराए। इस नयी शुरुआत के लिए मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नैतिक साहस और समर्थन मिला।
सवाल- सदन संचालन में परिवर्तन की जरूरत कैसे महसूस हुई?
जवाब- महिला विधायकों को ही लीजिए। वे शिकायतों से संबंधित लिखित प्रश्न तो लगाती हैं, लेकिन ज्यादातर मुखर होकर बोल नहीं पातीं। करीब पांच प्रतिशत महिला विधायक ही बहस में मुखर होकर हिस्सा लेती हैं। बीते मॉनसून सत्र में विशेष सत्र में महिला सदस्यों ने कार्यवाही में भाग लिया। इस दौरान संबोधन की समय सीमा जो कि तीन से आठ मिनट है, उसे हटा दिया गया। सवा आठ घंटे के सदन में 38 महिलाएं बोलीं। अध्यक्ष आसन पर उन्हें बैठने का मौका भी दिया।
सवाल-आप द्वारा किए जा रहे नवाचार में नियमावली आड़े नहीं आएगी ?
जवाब- वर्ष1958 वाली नियमावली पुरानी हो गयी है। नयी नियमावली अगले सत्र तक आ जाएगी। विभिन्न सत्रों तक 90 दिन तक व्यवस्थित ढंग से रचनात्मक सकारात्मक सदन भी चलेगा।
सवाल-ऐसे युवा और कुछ विधायक हैं जो बोले बिना ही सत्र पार कर लेते हैं।
जवाब- देखने में आया है कि 90-100 विधायक ऐसे हैं जिन्हें बोलने का अवसर नहीं मिलता या बोलने से बचते हैं। उनका भी विशेष सत्र बुलाने की संभावनाएं टटोल रहे हैं।
सवाल- कैसी विधान सभा बनाना चाहते हैं?
जवाब- ई-विधान व्यवस्था की समय सीमा अधिकारियों को पहले ही दे दी थी। पेपरलेस काम होने लगा है। उम्दा कैंटीन है। बड़ी-बड़ी दो एलईडी लगी हैं। एक बार में एक सदस्य ही बोलने को खड़ा होता है। गैलरी में प्रेरणा देते महापुरुषों के चित्र हैं। कोशिश है कि आने वाली पीढ़ी को सर्वगुण संपन्न लोकतांत्रिक और जवाबदेह विधानसभा मिले।
सवाल-क्या इससे विधायकों की छवि में परिवर्तन देखते हैं?
जवाब- यही उद्देश्य है कि विधायकों की पहचान संजीदा और संवेदनशील विधायकों वाली बने, वे जनता में अपने आचरण व्यवहार से पहचाने जाएं। डाक्टर, इंजीनियर, एमबीए, एमसीए डिग्री धारक विधायकों के साथ बैठकें करता हूं। सभी सहयोग देते हैं। उनसे भविष्य का रोड मैप पूछता हूं। अनुभवी विधायकों संग बैठक में उनके अनुभव का लाभ लेता हूं।
सवाल- आप ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट के लिए निवेश लाने विदेश चले जाते हैं, तो कभी मंत्रियों के विभागों की कार्यशैली में सुधार की बात करते हैं।
जवाब- प्रदेश के चतुर्मुखी विकास के लिए सब कुछ करने करने को तैयार हूं। मुख्यमंत्री के अनुरोध पर निवेश के लिए विदेश गया था।
सवाल- विपक्ष को कौन सी घुट्टी पिला रखी है कि सदन में आप उन्हें कुछ कहते हो तो वह सुन लेता है। अखिलेश भी चुप रहते हैं?
जवाब- नेता विपक्ष अखिलेश का पूरा सहयोग मिलता है। जब वे बात रखते हैं, पूरी सुनता हूं। हो-हल्ला नहीं होने देता। इससे समय बरबाद होता है।

विधायकों की योग्यता
लॉ ग्रेजुएट-85
पीएचडी धारक-14
पूर्व सरकारी अधिकारी-14
मैनेजमेंट डिग्री धारक-15
डॉक्टरों की संख्या-18
इंजीनियरों की संख्या-16
महिला विधायक- 47