कानपुर: भाजपा में वर्चस्व की राजनीति में दमदार कौन, कल होगा तय

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Published By Deepak Mishra
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मेयर प्रत्याशी का नाम फाइनल होना लगभग संभव, चुनावी अधिसूचना के बाद पार्टी नेतृत्व घोषित करेगा नाम

चर्चा में ब्राह्मण, वोट ज्यादा है तो प्रत्याशी भी उसी का हो, गैर ब्राह्मण प्रत्याशी में वरिष्ठ नेता पूनम कपूर की चर्चा, टिकट के लिए और भी कई नामों पर हो सकता है विचार

कानपुर, अमृत विचार। शनिवार का दिन कानपुर में भाजपा के दो दिग्गज के रसूख और केंद्रीय नेतृत्व में तगड़ी पहुंच की परीक्षा है। ये दोनों दिग्गज भाजपा नेता कौन हैं, यह जगजाहिर है। दोनों नेताओं के बीच खुल्लमखुल्ला राजनीतिक जंग तब से चल रही है कैप्टन पंडित जगतवीर सिंह द्रोण का टिकट काटा गया था। वर्तमान में भी दोनों वजनी नेता हैं। मेयर के चुनाव में समीकरण कुछ ऐसे फंस गये हैं जिसका लोकसभा चुनाव 2024 से सीधा संबंध है। सूत्रों की मानें शनिवार की बैठक में मेयर प्रत्याशी का नाम लगभग तय हो जाएगा।

कानपुर लोकसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी है। भाजपा के गठन के बाद पार्टी के पहले प्रत्याशी 1984 में डॉ सोमनाथ शुक्ला थे जिन्हें कांग्रेस के दादा नरेश चंद्र चतुर्वेदी ने पराजित किया था। भाजपा ने लोकसभा में ब्राह्मण पर दांव लगाया है। हां, अपवाद के तौर पर 2009 में सतीश महाना को प्रत्याशी बनाया था पर वह 18 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। हार के पीछे पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी थी जो आज भी मुखर है। मेयर के चुनाव में कोई आठ लाख ब्राह्मण मतदाता है।

भाजपा भी लगभग यही मंथन कर रही है कि यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा जाए। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जिताऊ प्रत्याशी के रूप में सतीश महाना (विधानसभा अध्यक्ष) का नाम सबसे ऊपर है। वर्तमान सांसद सत्यदेव पचौरी हालांकि एक फिर मैदान में उतरना चाहते हैं। पर बढ़ती उम्र और केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मौखिक रूप से कह दिया गया है कि 75 साल पार वालों को टिकट नहीं दिया जाएगा। ऐसे में पार्टी के भीतर पचौरी का पत्ता कटने की संभावना है। महाना का रास्ता अवरुद्ध करने के लिए पचौरी का प्रयास है कि मेयर के चुनाव में गैर ब्राह्मण मेयर प्रत्याशी उतारा जाए। तो दूसरी तरफ बताते हैं कि महाना कैंप ब्राह्मण प्रत्याशी को लड़ाने के पक्ष में है। 

दबी जुबान से कहा जाता है कि महाना एक बार फिर प्रमिला पांडेय के पक्ष खड़े हो सकते हैं। या किसी अन्य ब्राह्मण महिला को प्रत्याशी बनाए जाने में मददगार हो सकते हैं। मेयर के चुनाव में जातीय समीकरण भी कुछ ऐसा ही बैठ रहा है कि महाना ब्राह्मण प्रत्याशी तो पचौरी गैर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने की जुगत में लगे हैं। महाना के कामकाज पर सांसद पचौरी, भोले और अशोक रावत कुछेक बार सवाल भी उठा चुके हैं।

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