नगर निकाय चुनाव: सपा ने फिर दोहराई 2012 की कहानी, एक बार फिर ऐन मौके पर बदला प्रत्याशी
बरेली, अमृत विचार। राजनीतिक दलों में प्रत्याशी बदलना कोई नई बात नहीं है लेकिन घोषित प्रत्याशी को मैदान से वापस बुलाने का काम सपा में लगभग 11 साल बाद दोबारा हुआ है। इससे पहले 2012 के चुनाव में भी ऐन मौके पर प्रत्याशी बदला गया था। अब दूसरी बार क्या होगा, यह तो चुनाव परिणाम बताएगा लेकिन सपा की इस रणनीति का इस बार संजीव सक्सेना मोहरा बने और उन्हें अपना सिंबल वापस लेना पड़ा।
सपा ने अपने प्रत्याशी की घोषणा भाजपा से पहले ही 15 अप्रैल को कर दी थी। इसके बाद पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी थीं। नामांकन शुरू होने के बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर डॉ. आईएस तोमर ने भी नामांकन करा दिया। इसी के बाद से संजीव सक्सेना के चुनाव लड़ने को लेकर सवाल खड़े होने लगे। उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्यादातर सपा नेताओं के न पहुंचने से ये सवाल और मजबूत हो गए थे। इसके बाद डॉ. तोमर को समर्थन दिलाने के मिशन मिशन में जुट गए। वह संजीव के भी साथ रहे और डॉ. तोमर का पक्ष भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने रखते रहे। उनकी यह कोशिश आखिरकार रंग ले आई।
सूत्रों ने बताया कि बड़े नेताओं से हरी झंडी मिलने के बाद संजीव के कैंप में सपा नेताओं के आने का सिलसिला तो कायम रहा लेकिन उन्हें बैठाने के लिए स्पष्ट बात करने में हीलाहवाली की जाती रही। पहले नाम वापस लेने की हवा चली और फिर इसमें गंभीरता आने लगी। सपा ने 2012 में डॉ. अनिल शर्मा (अब भाजपा नेता ) की पत्नी रजनी शर्मा को टिकट दिया था। डॉ. अनिल शर्मा ने पत्नी के प्रचार में जुटे थे लेकिन पार्टी के निर्देश पर पत्नी को बैठाना पड़ा। तब भी इसी तरह प्रेस वार्ता कर सपा प्रत्याशी के बैठने की बात कही गई थी। सपा नेताओं की यह रणनीति सफल रही और डॉ. तोमर ने जीत दर्ज कराई थी।
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