चेक के चोरी होने या गुम होने पर एनआई एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होंगे : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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Published By Pradumn Upadhyay
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अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुम हुए या चोरी चेक के संबंध में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए कहा है कि चोरी या गुम चेक एनआई अधिनियम की धारा 138 के दायरे में नहीं आता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की एकलपीठ ने एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज मामले की कार्यवाही को निरस्त करने के लिए बॉबी आनंद उर्फ योगेश आनंद द्वारा दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णय को देखते हुए अदालत ने पाया कि वर्तमान मामले के तथ्यों में एनआई अधिनियम की धारा 138 के आवश्यक तत्वों की कमी है और चोरी तथा गुम हुए चेक का मामला एनआई अधिनियम की धारा 138 के दायरे में नहीं आता है। इस प्रकार के मामलों में उपरोक्त अधिनियम की धारा लागू नहीं होती है।

मामले के तथ्यों के अनुसार याची ने पुलिस और अपने बैंक को सूचना दी कि उसके कार्यालय से दो चेक चोरी हो गए हैं और विपक्षियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई। जवाब में विपक्षियों ने याची के खिलाफ शिकायत दर्ज की कि याची द्वारा निर्गत चेक बाउंस हो गया है। पुलिस द्वारा चल रही जांच के बावजूद मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत का संज्ञान लिया और याची को समन जारी कर दिया। याची ने अदालत के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताते हुए पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर दी, लेकिन अदालत से उसे कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद 1 जनवरी 2003 को याची ने शिकायतकर्ता और तीन सह आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत चोरी के चेक के लिए प्राथमिकी दर्ज करवाई, जिसमें आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद सभी अभियुक्तों को अग्रिम जमानत मिल गई।

उक्त प्राथमिकी दर्ज करने के 2 महीने और 11 दिनों के बाद शिकायतकर्ता ने एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत थाना कोतवाली, मथुरा में याची के खिलाफ शिकायत दर्ज की। इस पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने उक्त धारा के तहत शिकायत दर्ज करने में साफ हाथों से न्यायिक मजिस्ट्रेट, मथुरा की अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया है, साथ ही चेक के अनादरण के संबंध में मुंबई में उसके खिलाफ लंबित अपराधिक मामले के भौतिक तथ्य को भी छुपाया है। अतः याची के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही ना केवल दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है। सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।

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