गुप्तारघाट और सूर्यकुंड के पार्कोंं में प्रवेश के लिए है शुल्क, पूरे क्षेत्र में नहीं : ADA

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Published By Jagat Mishra
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दस रुपये शुल्क लगाए जाने पर प्राधिकरण ने दी सफाई

अमृत विचार, अयोध्या। गुप्तारघाट और सूर्यकुंड में दस रुपये प्रवेश शुल्क लगाए जाने को लेकर सवालों से घिरे अयोध्या विकास प्राधिकरण (Ayodhya Development Authority) की आलोचना होने लगी तो उसने अपनी सफाई दी है। प्राधिकरण ने कहा है कि दोनों जगहों पर शुल्क पार्कोंं में प्रवेश पर लगाया गया है पूरे क्षेत्र में नहीं। सचिव सत्येंद्र सिंह ने कहा इसे बेवजह मुद्दा बनाया जा रहा, निर्धारित शुल्क पार्कोंं के रखरखाव के लिए है।
  
दो दिन पहले अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा गुप्तारघाट और सूर्यकुंड पर दस रुपये प्रवेश शुल्क लगाए जाने का मामला सामने आया। इसे लेकर लोगों ने कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए प्रवेश शुल्क को गलत बताया। वहीं गुरुवार को जब प्राधिकरण से बात की गई तो वह सफाई की मुद्रा में आ गया है। सचिव सत्येंद्र सिंह ने कहा कि क्या शुल्क लगाया इतना बड़ा मुद्दा हो गया, पार्क में लगा है कोई गुप्तारघाट में तो लगा नहीं है। पार्क में रखरखाव का पैसा कहां से लायेंगे। सिर्फ पार्क में एंट्री फीस लगी है। वहां झूला लगा है, जिम के संसाधन है, माली रखने होगें, बिजली बिल वगैरह प्राधिकरण कहां से लायेगा पैसा। उन्होंने कहा कि मंदिर पर कहां टैक्स लगा रहे हैं, सूर्यकुंड में भी मंदिर पर नहीं केवल पार्क में लगा हुआ है। मंदिर का गेट अलग है वहां जाए आराम से दर्शन किया जा सकता है। 

उन्होंने कहा कि व्यवस्था को लेकर दोनों जगह पार्कों में प्रवेश पर ही दस रुपये का शुल्क लगा है। सचिव ने बताया रखरखाव के लिए खर्च नहीं निकालेंगे तो आने वाले दिनों में दोनों पार्कों की दुर्दशा हो जायेगी तब कौन जिम्मेदार होगा। हालांकि वह इसका जवाब नहीं दे सके कि शुल्क लगाए जाने का फैसला प्राधिकरण बोर्ड से हुआ है या नहीं।

आचार्य मिथिलेश नंदनी शरण की पोस्ट बनी चर्चा का विषय
गुप्तारघाट शुल्क मामले में आचार्य मिथिलेश नंदनी शरण की गुरुवार को की गई एक पोस्ट चर्चा का विषय बनी हुई है। उन्होंने अपनी पोस्ट में सरकार को इंगित करते हुए व्यंग किया है। लिखा है "अयोध्या के भूगोल के मस्तक स्थानीय इस अद्वितीय तीर्थ पर सरकार ने जितना धन लगाया है, उसे देखते हुये धन वसूलने की योजना को बुरा नहीं कहा जा सकता। फिर, जब पर्यटन ही विकसित हो रहा है तो मुफ्त क्यों.. हमें तो लगता है कि शुल्क भी दस-बीस रूपये नहीं सौ, पांच सौ और हजार के अनुपात में रखना चाहिये। यूँ भी शासन की वित्तीय योजना में विलासिता  का रेट हाई रहता ही है।मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के चरण चिह्न विभूषित, और भगवान् गुप्तहरि के तप से पवित्र हुई इस भूमि की नियति यदि उन्मत्त लोक की इन्द्रियों का तर्पण करना ही है, तो कुछ कसर क्यूँ रहे"।

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