विकल्प न होने पर ही स्वीकार करें CEC का पद, राजीव गांधी और वेंकटरमन ने टीएन शेषन को दी थी सलाह

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
On

नई दिल्ली। जब चंद्रशेखर सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) पद के लिए टी एन शेषन के नाम का प्रस्ताव रखा तो वह दुविधा में थे। इसलिए, उन्होंने राजीव गांधी और तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमन से संपर्क किया तथा दोनों ने सलाह दी कि अगर कोई अन्य पद उपलब्ध न हो तो इसे स्वीकार कर लें। वह फिर भी उलझन में थे।

ये भी पढ़ें - सेना: आतंकी नेटवर्क में महिलाओं और किशोरों को शामिल करने की साजिश को किया बेनकाब 

इसके बाद उन्होंने एक आखिरी व्यक्ति- कांची के शंकराचार्य से परामर्श करने का फैसला किया। उन्होंने आगे बढ़ने की सलाह दी और कहा, "यह एक सम्मानजनक काम है।’’ अपना जवाब पाकर शेषन ने कानून मंत्री को फोन किया और कहा कि वह कार्यभार संभालने के लिए तैयार हैं। यह घटनाक्रम शेषन की आत्मकथा ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लास’ में दर्ज है, जिसे उनके मरणोपरांत रूपा प्रकाशन ने प्रकाशित किया। शेषन का 2019 में निधन हो गया था।

किताब में कहा गया है,"... तत्कालीन सीईसी, पेरी शास्त्री, का खराब स्वास्थ्य के कारण निधन हो गया। सरकार ने कुछ ऐसा किया जो बहुत ही नासमझी भरा था। यह रमा देवी, सचिव, कानून, को कार्यवाहक सीईसी के रूप में नियुक्ति की प्रक्रिया के लिए आगे बढ़ी। देवी के पदभार संभालने के चौथे दिन, मुझे कैबिनेट सचिव विनोद पांडे का फोन आया।"

पांडे ने कहा कि सरकार योजना आयोग के तत्कालीन सदस्य शेषन को सीईसी नियुक्त करने की योजना बना रही है। किताब में कहा गया है, "मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई मुझे सीईसी बनाने के बारे में सोचेगा। इसलिए, मेरी तत्काल प्रतिक्रिया 'नहीं' कहने की थी क्योंकि मेरा कभी चुनावों से कोई लेना-देना नहीं रहा था।" कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने उनसे कहा, "मुझे आपसे जवाब चाहिए, ताकि मैं आपको सीईसी बनाने के लिए कागजात संबंधी प्रक्रिया कर सकूं।" शेषन ने कुछ समय के लिए निर्णय पर विचार किया।

वह यह सोचने की कोशिश कर रहे थे कि वह किसकी सलाह ले सकते हैं। रात के दो बजे रहे थे। उन्हें राजीव गांधी का नंबर पता था और उन्होंने उन्हें फोन किया। जब गांधी प्रधानमंत्री थे तब शेषन कैबिनेट सचिव थे। गांधी ने उन्हें अपने आवास पर आने के लिए कहा और शेषन रात करीब ढाई बजे वहां पहुंचे।

पुस्तक के अनुसार, गांधी ने शेषन से कहा, "क्या? क्या वह आपको सीईसी का पद देने जा रहे हैं? वह बाद में पछताएंगे। यह नौकरी न तो आपके लिए अच्छी है और न ही आपको सीईसी के रूप में नियुक्त करना चंद्रशेखर के लिए अच्छा होगा। इस पद को तभी लें जब कोई अन्य पद उपलब्ध न हो।"

बाद में, शेषन ने राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से मिलने का समय मांगा और राष्ट्रपति भवन जाकर उन्हें खबर दी। वेंकटरमन की सलाह थी, "सीईसी का पद आपके लिए ठीक नहीं होगा। आपको कोई दूसरी नौकरी नहीं मिल सकती। अगर कोई विकल्प नहीं है, तो यह पद ले लीजिए।" उन्होंने फिर अपने भाई और अपने ससुर से बात की लेकिन उनकी सलाह ने उन्हें और भी भ्रमित कर दिया।

अंत में, शेषन ने कांची के शंकराचार्य से संपर्क करने का फैसला किया और इसलिए उन्होंने कांची मठ को फोन किया तथा वहां अपने एक मित्र के जरिए सवाल आगे तक पहुंचाया। शेषन ने लिखा, "वह (मित्र), शंकराचार्य से पूछने के लिए तैयार हो गया। उसने 20 मिनट बाद फोन किया... बड़ा आश्चर्य हुआ।

इससे पहले कि मैं शंकराचार्य से पूछ पाता, उन्होंने खुद कहा,‘‘ यह एक सम्मानजनक काम है, इसे स्वीकार करने के लिए कहो,’’ और उन्होंने स्वीकृति दे दी।" इसके बाद उन्होंने तुरंत स्वामी को फोन किया और कहा कि वह सीईसी बनने के लिए तैयार हैं। शेषन ने 12 दिसंबर, 1990 को भारत के नौवें सीईसी के रूप में कार्यभार संभाला और 11 दिसंबर, 1996 तक इस पद पर बने रहे।

पुस्तक में, उन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में एक व्यापक परिवर्तन लाने के लिए अपने अकेले संघर्ष का विस्तार से वर्णन किया है और उन घटनाओं को भी साझा किया है जो उनके उस रवैये को दर्शाती हैं जिसने केंद्र सरकारों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। उनके अनुसार, सीईसी का काम उनके द्वारा धारण किए गए अधिक संतोषजनक पदों में से एक था।

उन्होंने लिखा, "मेरे कार्यकाल के दौरान, लोग चुनाव के महत्व के बारे में अधिक जागरूक हो गए। मतदान करने वाली आबादी का प्रतिशत काफी बढ़ गया, चाहे वह गांवों, कस्बों या शहरों में हो, और चुनाव अब पहले की तुलना में अलग तरह से देखे जाते हैं।" 

ये भी पढ़ें - सवाल पूछने वाली पत्रकार की नौकरी खा गई स्मृति ईरानी : कांग्रेस

संबंधित समाचार