मुरादाबाद  : अब बंदी की रिहाई में जमानतदार का नहीं फंसेगा पेंच, नियमों में हुआ बदलाव

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Published By Bhawna
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जमानत मिलने पर सात दिन में रिहाई न होने पर जेल प्रशासन कोर्ट को देता है जानकारी

निर्मल पांडेय,अमृत विचार। जमानत मिलने के बाद अब कोई भी बंदी जेल में निरुद्ध नहीं रहेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से पारित एक आदेश के उपरांत जिला कारागार प्रशासन सक्रिय हो गया है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक पीपी सिंह ने कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए पिछले महीने जून तक 31 बंदियों को जेल से रिहा कर चुके हैं। इधर, जुलाई में भी 22 बंदियों को निजी मुचलके पर ही जेल से रिहा करने की तैयारी है। उन्होंने बताया कि जेल में निरुद्ध बंदियों को यदि कोर्ट से जमानत पर रिहा होने की अनुमति मिल जाती है और वह जमानतदार के नहीं मिलने से जेल में ही निरुद्ध रहते हैं। इस तरह के नियमों में अब बदलाव हो गया है।

वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया कि बंदियों को संबंधित कोर्ट बेल ऑर्डर (जमानत आदेश) की एक प्रति अविलंब जेल को कोर्ट से मेल पर आ जाती है। इसके बाद उसके बारे में संबंधित बंदी को जेल अधिकारी सूचित करते हैं। फिर बंदी को अधिकतम सात दिन के अंदर जेल से रिहा किया जाता है।

लेकिन, जमानतदार न मिलने की बाधा में जब बंदी की रिहाई अटकती है तो उस स्थिति में इसकी सूचना जेल अधीक्षक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) सचिव को देते हैं। इसके बाद डालसा प्रकरण को कोर्ट से अवगत कराती है और प्रक्रिया पूरी करने के बाद बंदी को निजी मुचलके (अंतरिम जमानत) पर छाेड़ने की अनुमति प्राप्त होती है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया कि संबंधित बंदी की जमानत संबंधी आदेश कब हुआ और उसकी रिहाई किस तिथि में हुई, इसका विवरण भी कंप्यूटर साफ्टवेयर पर अंकित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कोर्ट से बंदी के लिए जमानत की शर्तों और निर्धारित जमानत राशि में ढील देने के लिए भी कोर्ट के निर्देश हैं। इसके आधार पर बंदी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने का काम डालसा के अधिकारी करते हैं। फिर संबंधित रिपोर्ट डालसा के सचिव तैयार कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। 

जमानत में बदलाव से जेल व बंदी को लाभ
वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद जेल में काफी संख्या में बंदियों को लाभ मिला है और वह निजी मुचलके पर ही रिहा हुए हैं। वैसे काफी संख्या में बंदी जमानत मिलने के बाद भी जमानतदार के अभाव में जेल में पड़े रहते थे। उन्होंने बताया कि अंतरिम जमानत का सबसे बड़ा लाभ बंदियों को है कि जैसे किसी घर का मुखिया ही जेल में निरुद्ध है और जमानत मिलने पर वह जेल में रहने के दौरान जमानतदार का इंतजाम नहीं कर पाता है, उस स्थिति में वह जब अंतरिम जमानत पर छूटता है तो नियत दिनों में जमानतदार की व्यवस्था कर लेता है। जेल प्रशासन को लाभ ये है कि अंतरिम जमानत मिलने से बंदी के रिहा होने पर बैरक में जगह खाली होती है।

लोक अदालत से 60 बंदी रिहा
जेलर मृत्युंजय पांडेय ने बताया कि बंदियों को लोक अदालत के आयोजन का बड़ा लाभ मिलता है। अभी 15 जुलाई को हुई लोक अदालत में 113 बंदियों के प्रकरण निस्तारित कराए गए हैं। इसमें से 60 बंदी जेल से रिहा भी हो गए हैं। शेष का भी एक-एक केस निस्तारित हुआ है, हालांकि वर्तमान में वह अन्य मामले में जेल में निरुद्ध हैं। इनकी सजा की अवधि हाल ही में पूरी होने वाली है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लाभ बंदियों को मिल रहा है। साथ जेल की व्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है। कोर्ट ने बंदियों को विकल्प दिया है। जमानत भरने के लिए बंदियों को एक माह का मौका देकर जेल से रिहा किया जा रहा है। यदि वह जमानत नहीं भरवा पाते हैं तो उन्हें दोबारा फिर जेल में आना पड़ेगा।- पीपी सिंह, वरिष्ठ जेल अधीक्षक

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