रायबरेली के राजनीतिक सन्नाटे में अबकी न लड़िहैं का की सुगबुगाहट, कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग को जीतना एक चुनौती

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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नगर पालिका की एतिहासिक जीत ने कांग्रेस की जमीन को दिया खाद-पानी

रायबरेली, अमृत विचार। लोकसभा सभा चुनाव 2024 अभी दूर हैं लेकिन सियासत के अलंबरदारों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। रुहेलखंड से लेकर जाट लैंड, पश्चिमांचल से लेकर बुंदेलखंड, मैदान से लेकर पूर्वांचल तक सियासी जमीन लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो रही है। महत्वपूर्ण जिलों में दिग्गज अभी से कील कांटे दुरुस्त करने में लगे हैं। इन सबके के बीच कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग रायबरेली में राजनीतिक सन्नाटा है। 

हालांकि लोगों के बीच में एक बात जरूर सुगबुगा रही है कि अबकी न लड़िहैं का। अगर ऐस भा तो का होई। बैसवारा भाषा में इस शब्द के साथ शहर और गांवों में अक्सर चर्चा होती रहती है। इससे साफ है कि कांग्रेस खासकर गांधी परिवार को लेकर लोगों में विचार मंथन के साथ आगे की रणनीति पर आंख लगी है। वहीं विपक्षी भी असमंजस्य में हैं। कांग्रेस से रायबरेली में कौन आएगा, यह इस बार लाख टके का सवाल है।

रायबरेली के सियासी समीकरणों की बात की जाए तो नगर पालिका के चुनाव में जिस तरह कांग्रेस प्रत्याशी शत्रोहन सोनकर ने 50 फीसदी वोट हासिल कर जीत दर्ज की है वह प्रदेश में अलग ही कहानी कह रहा है। साफ है कि रायबरेली में कांग्रेस का गढ़ मजबूत है। कारण नगर पालिका के चुनाव में भाजपा के थिंकटैंक ने सारी ताकत लगा दी थी।

डिप्टी सीएम से लेकर खुद सीएम ने जनसभा की लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी की रिकार्ड जीत हुई है। जबकि विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में भाजपा को लगा था कि नगर पालिका के चुनाव में कांग्रेस कहीं खड़ी नहीं होगी लेकिन परिणाम खासे चौकाने वाले रहे। राजनीति के जानकार बताते हैं कि रायबरेली के इतिहास में दो बार ऐसा हुआ जब किसी चुनाव में प्रत्याशी को 50 फीसदी से अधिक मत मिल हों। पहली बार 2006 के लोकसभा बाई इलेक्शन में सोनिया गांधी को 60 फीसदी मत मिले थे।

वहीं दूसरी बार नगर पालिका के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शत्रोहन सोनकर को 50 फीसदी मत मिले। गौर करने वाली यह है कि पिछले नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा श्रीवास्तव 23 हजार मत पाकर कुर्सी पर बैठी थीं तो वहीं इस बार शत्रोहन सोनकर 40 हजार की लीड लेकर चुनाव जीते। यह राजनीतिक लिहाज से बहुत बड़ा उलटफेर है। भाजपा के दिग्गजों ने भी यह नहीं सोचा था कि जिस रायबरेली में कांग्रेस का एक भी विधायक और एमएलसी नहीं है वह नगर पालिका के प्रतिष्ठा के चुनाव में धमाकेदार जीत दर्ज करेगी।

भाजपा बूथ पर कांग्रेस राहुल के चेहरे को कर रही आगे

रायबरेली में भाजपा बूथ पर मेहनत कर रही है। अभी जल्द ही पार्टी पन्ना प्रमुख भी बनाएगी लेकिन कांग्रेस शांत है और वह राहुल गांधी के कदमों को देखकर पुराने कांग्रेसियों के साथ हवा बदलने में लगी है। इस हवा का रुख अमेठी, उन्नाव, हरदोई, प्रतापगढ़, कानपुर तक जा रहा है। जानकारों का कहना है कि 2004 की तरह इस बार भी रायबरेली से ही आसपास के जिलों को कांग्रेस के लिए बड़ा संदेश जाएगा। नगर पालिका की जीत ने कांग्रेस को जमीन जमाने के लिए ताकत दी है।
सोनिया गांधी के तोहफों को भुलाया नहीं जा सकता

कांग्रेस के प्रवक्ता विनय द्विवेदी कहते है कि सांसद सोनिया गांधी के तोहफों को भुलाया नहीं जा सकता है। रायबरेली के लोग भी जानते हैं कि एम्स, नाइपर, निफ्ट, एफडीडीआई, हाईवे, रेल कोच, आरेडिका सहित अरबों की योजनाएं रायबरेली में सांसद सोनिया गांधी की वजह से आई हैं। एम्स में दिल्ली की तरह सुविधा होने के लिए सांसद ने प्रयास किए लेकिन भाजपा सरकार में ऐसा नहीं हो सका।

जो कभी कांग्रेस में थे उनमें भी चल रही कशमकश

रायबरेली में जिस तरह से कांग्रेस ने नगर पालिका का चुनाव जीता और राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा करने के बाद एक नए कलेवर में आए हैं। उसने उन चेहरों को भी अचरज में डाल दिया है तो कभी राहुल की वजह से ही कांग्रेस छोड़ गए थे। अब अंदरखाने कांग्रेस की अगली चाल को देखकर आगे की रणनीति तय करने के लिए कुछ चेहरे लगे हुए हैं। बहुत कुछ लोकसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी घोषित होने के बाद होगा।
लड़ेगा तो कोई वीआईपी

सांसद सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी या नहीं, यह तो भविष्य के पास है लेकिन इतना जरूर है कि कांग्रेस इस प्रतिष्ठित सीट से किसी ऐसे चेहरे को उतारेगी जिसके बल पर आसपास के जिलों की सीटों पर जीत दर्ज की जाए। कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि रायबरेली कांग्रेस की अभेद्य सीट है। इस सीट ने ही संक्रमण काल में कांग्रेस का साथ दिया और उसके बाद कांग्रेस सन 1980, 1990, 2004 में दिल्ली की सत्ता हासिल करने में सफल हुई।

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