मुरादाबाद : सूफी अंबा प्रसाद और जफर हुसैन के नगमें गुनगुनाता है अगवानपुर
कस्बा के कांजेमल भटनागर के घर जन्मे अंबा प्रसाद के जिगरी दोस्त थे पड़ोसी सैय्यद जफर हुसैन वास्ती एडवोकेट
दोनों ही क्रांतिकारी ने कलम से अंग्रेजी सत्ता को खूब छकाया था , अंबा प्रसाद हिंदू-मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे
नैय्यर अब्बास नकवी, अमृत विचार। स्वतंत्रता संग्राम के दीवाने सूफी अंबा प्रसाद का अगवानपुर से सीधा रिश्ता है। अंबा प्रसाद और सैय्यद जफर हुसैन वास्ती जिगरी दोस्त थे। दोनों की मित्रता का गवाह उपनगर है। जंग-ए-आजादी में दोनों की दोस्ती का अहम योगदान है। सन 1858 को कस्बा अगवानपुर में सूफी अंबा प्रसाद का कांजेमल भटनागर के बेटे के रूप में जन्म हुआ। इन्होंने बरेली से बीए की शिक्षा पूरी की, जबकि इस माटी में पैदा हुए सैय्यद जफर हुसैन वास्ती ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। दोनों ही क्रांतिकारी रहे। दोनों ने कलम से अंग्रेजी सत्ता को खूब छकाया। दोनों यहां से मुरादाबाद रहने लगे।
इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह है कि सन 1889 में सूफी अंबा प्रसाद ने सुदर्शन प्रेस नाम से छापाखाना खोला, जिसमें साप्ताहिक अखबार सितारा-ए-हिंद प्रकाशित किया। जबकि जामो उलूम व अमृत बाजार पत्रिका का भी सम्पादन किया। इसी में तीन माह की कैद भी हुई। वर्ष 1906 में सरदार भगत सिंह भारत माता सोसाइटी के सदस्य बने सूफी अंबा प्रसाद की लिखी पुस्तक एक वादी मसीहा को अंग्रेजाें ने प्रतिबंधित कर दिया। सन 1935 में अंबा प्रसाद का अखबार बंद कर दिया गया। छापाखाने जला दिया गया, जमीन जब्त कर ली गई। उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया।
सैय्यद जफर हुसैन वास्ती एडवोकेट को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने कानूनी मदद लेनी चाही तो गिरफ्तार कर लिए गए। सात साल की सजा के बाद सूफी अंबा प्रसाद लाहौर पहुंचे, जहां पेशवा नामक अखबार प्रकाशित किया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पेशवा नामक अखबार में लिखते रहे।
उधर, सैय्यद जफर हुसैन वास्ती एडवोकेट जेल से रिहा होने के बाद अंग्रेजों से अपने हक की लड़ाई लड़ते रहे। अपनी विद्वता के बल पर हिंदू-मुस्लिम के खिलाफ अंग्रेजों की साजिश को नकारा। सैय्यद जफर ने अपनी जिंदगी की अंतिम सांस मुरादाबाद में ली। उधर, सूफी अंबा प्रसाद को अंग्रेजी सरकार ने लाहौर में भी नहीं रहने दिया, जिसके कारण सूफी अंबा प्रसाद अफगानिस्तान, बलूचिस्तान के रास्ते ईरान की राजधानी तेहरान पहुंच गए। वहां की मस्जिद के इमामे जुमा मौलाना सैय्यद जियाउद्दीन तबातबाई से मुलाकात कर तेहरान में उनके पास रहने लगे। तेहरान में रहकर अंबा प्रसाद ने आबे हयात नामक अखबार प्रकाशित किया। बाद में ईरान की गदर पार्टी में शामिल हो गए।
अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आबे हयात में लिखते रहे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। सूफी अंबा प्रसाद हिंदू-मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे। ईरान में ही सूफी अंबा प्रसाद ने अपने जीवन की आखिरी सांस ली। वहां के शिराज शहर में अंबा प्रसाद का मकबरा अभी भी है। कस्बा के मोहल्ला ढाप में सूफी अंबा प्रसाद के परपोते नीरज भटनागर रहते हैं। जानकार कहते हैं कि जब भी किसी क्रांतिकारी का नाम लिया जाएगा तो सूफी अंबा प्रसाद और सैय्यद जफर हुसैन वास्ती एडवोकेट की दोस्ती की चर्चा स्वाभाविक होगी।
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