बरेली: श्योराज बहादुर को जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहती थी ब्रिटिश हुकूमत
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान काटी थी छह महीने की कैद, 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से बने थे नवाबगंज के विधायक
मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार : बरेली शहर आजादी की लड़ाई का गढ़ रहा। तमाम ऐसे क्रांतिकारी रहे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जब देश आजाद हुआ तो सालों गुलामी झेलने के बाद मिले जख्मों को भरने के लिए सियासत में कूदे मगर यह उन्हें रास नहीं आई। ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे एडवोकेट श्योराज बहादुर।
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अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने उनको जिंदा या मुर्दा पकड़कर लाने वाले को इनाम देने की घोषणा तक कर दी थी। देश आजाद हुआ तो विधायक बने मगर उनकी ईमानदारी और सियासत के दांवपेंच आड़े आते रहे। वह उर्दू के शायर भी थे। लिहाजा सियासत से मिले जख्मों को कुछ यूं बयान किया...अपनी हस्ती को तो मिटाना गवारा न हुआ, कतरा, कतरा ही रहा शामिल-ए-दरिया न हुआ।
1942 में महात्मा गांधी की अगुवाई में देश भर के क्रांतिकारी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे। बरेली में भी क्रांति का बिगुल बज चुका था। उनके बेटे रजत कुमार बताते हैं कि उस वक्त उनके पिता बरेली कॉलेज से बीए की पढ़ाई कर रहे थे। कॉलेज की यूनियन से भी वह जुड़े हुए थे। आंदोलन के दौरान वह भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए।
वह बताते हैं कि अंग्रेजों को आशंका थी कि श्योराज बहादुर और उनके साथी सशस्त्र आंदोलन भी कर सकते हैं। लिहाजा उन जिंदा या मुर्दा पकड़कर लाने वाले को 800 रुपये इनाम देने की घोषणा कर दी गई। बाद में श्योराज बहादुर गिरफ्तार हुए और करीब छह महीने जेल में बंद रहे।
1947 में देश को आजादी मिली तो राजनीति में भी हाथ आजमाया। साल 1957 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा और नवाबगंज के विधायक बने। 1962 तक विधायक रहे श्योराज बहादुर को सियासत रास नहीं आई। सादगी भरी जिंदगी जीने के आदि श्योराज बहादुर जीवन भर साइकिल से चले। रजत कुमार बताते हैं कि उनके पिता ने परिवार नहीं बल्कि लोगों की भलाई के लिए काम किया। आज एक बार विधायक बनने पर नेता ऐशोआराम के साधन जुटाने में लग जाते हैं।
मुश्किल हालात में गुजर बसर कर रहा परिवार: श्योराज बहादुर की साल 1989 में मौत हो गई थी। उनके तीन बेटे सूर्य प्रकाश सक्सेना, वेद प्रकाश और रजत कुमार के अलावा पांच बेटियां थीं। एक बेटे और तीन बेटियों की मौत हो चुकी है। सबसे छोटे बेटे रजत कुमार ने शादी नहीं की है। उनके बाकी भाई और एक बहन भूड़ स्थित पुश्तैनी मकान में रहते हैं।
रजत कुमार जिस कमरे में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं उसमें बमुश्किल रोशनी पहुंचती होगी। पिता को मिला ताम्रपत्र दिखाते हुए वह कहते हैं कि सरकार से यही मिला है। पिता तो ईमानदारी की मिसाल थे। वह भी पिता की तरह सादगी भरी जिंदगी जीना चाहते हैं।
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