Allahabad High Court: सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट व उसकी लखनऊ पीठ में हुई सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि न्यायालय की समन्वय पीठ ने पहले ही उक्त याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार कर लिया है। अतः दोबारा उन्हीं मुद्दों पर विचार करने का कोई औचित्य नहीं है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनीता शर्मा व अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। गौरतलब है कि महीने की शुरुआत में दो प्रैक्टिसिंग अधिवक्ताओं ने एक जनहित याचिका दाखिल की, जिसमें राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं के पैनल में की गई नियुक्तियों को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि उपरोक्त नियुक्तियों में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है। इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि सरकार के करीबी रहे अधिवक्ताओं को नियुक्तियां दे दी गईं हैं।
महिला अधिवक्ताओं के लिए वांछित 30% कोटा को नजरअंदाज किया गया है। इसके अलावा इस बात की प्रार्थना की गई कि राज्य पैनल में नियुक्त लोगों की योग्यता और पात्रता की जांच करने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति गठित की जाए। इस पर राज्य का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने तर्क दिया कि किसी भी वादी को अदालत में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अपना अधिवक्ता चुनने का अधिकार है।
राज्य एक वादी होने के नाते न्यायालय के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिवक्ताओं के पैनल को चुनने के लिए स्वतंत्र है। इसके साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि जनहित याचिका उन अधिवक्ताओं द्वारा दाखिल की गई है जो चयन प्रक्रिया में असफल घोषित हो गए हैं।
मुख्य रूप से अपर महाधिवक्ता ने आगे कहा कि सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति एक कमेटी के माध्यम से हुई है और जिसकी अध्यक्षता महाधिवक्ता ने की थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशानुसार सभी नियुक्तियां हुई हैं। सभी तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी।
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