पश्चिम बंगाल शिक्षक संगठन विश्वविद्यालयों के वित्त अधिकारियों से बैठक के सरकार के फैसले के खिलाफ
कोलकाता। पश्चिम बंगाल के शिक्षकों के आठ संगठनों ने उच्च शिक्षा विभाग द्वारा राज्य विश्वविद्यालयों से मानव संसाधन प्रणाली (एचआरएमएस) पर चर्चा के कदम पर चिंता जताई है। इन संगठनों ने इसे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्वयत्तता को सीमित करने की कोशिश करार दिया है।
कलकत्ता विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (सीयूटीए), यादवपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेयूटीए), रवींद्र भारती विश्वविद्यालय संघ (आरबीयूटीए), पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डब्ल्यूबीएसयूटीए), बर्दवान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, केयूटीसी, एनएसओयूटीए, वीयूटीए सहित आठ संगठनों ने कहा कि इस कदम से विश्वविद्यालय परिसर उच्च शिक्षा विभाग के कार्यालय में तब्दील हो जाएंगे।
सहायक सचिव स्तर के अधिकारी ने हाल में राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों के वित्त अधिकारियों को भेजे पत्र में 20 सितंबर को ‘‘राज्य वित्तपोषित विश्वविद्यालय में एचआरएमएस से संबंधित’ मुद्दे पर चर्चा के लिए आयोजित बैठक में हिस्सा लेने को कहा है। विभाग को भेजे गए पत्र में संगठनों ने कहा, ‘‘ नियमों के तहत विश्वविद्यालय का कुलपति/कुल सचिव/वित्त अधिकारी उक्त संस्थान आहरण एवं संवितरण अधिकारी (डीडीओ) होता है।
अगर एचआरएमएस को लागू किया गया तो उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी डीडीओ की भूमिका में आ जाएंगे जो मौजूदा विश्वविद्यालय नियमों का घोर उल्लंघन होगा। यह उच्च शिक्षण संस्थाओं के स्वायत्त दर्जे के लिए भी गंभीर खतरा होगा।
विश्वविद्यालय अपने शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने के अधिकार भी खो सकते हैं।’’ जेयूटीए के महासचिव पार्थ प्रतिम रॉय ने बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ अगर सरकार किसी कारण से कर्मचारी का वेतन रोक देती है तो ऐसी परिस्थिति में विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ नहीं कर सकेगा।
इससे भी अधिक इस नीति का गंभीर पहलू यह है कि सरकार जनहित के नाम पर विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को दूसरे संस्थानों में स्थानांतरित कर सकती है और उनसे सरकारी कर्मचारी की तरह व्यवहार करेगी।’’ रॉय ने आरोप लगाया कि सरकार की यह ‘नापाक कोशिश’ विश्वविद्यालय परिसरों को उच्च शिक्षा विभाग के कार्यालयों में तब्दील करने की है और वह व्यवस्थागत तरीके से इन स्वायत्त संस्थानों के अधिकारों को छीन रही है।
उन्होंने कहा कि पूर्व शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी ने भी 2018 में इस नीति को लागू करने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें शिक्षक संगठनों का प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और इस बार भी शिक्षक संगठन पूरी मजबूत से इसका प्रतिरोध करेंगे।
