
Kanpur News : मच्छरों का कहर, हाई रिस्क जोन में शहर... पर सिस्टम सोया, मच्छर से होती ये बीमारियां
कानपुर में मच्छरों का प्रकोप है।
कानपुर में मच्छरों का प्रकोप है। कानपुर व मंडल में कई सालों से मच्छरों पर शोध नहीं हुए हैं। बस मच्छरों की रोकथाम के लिए नाम की फॉगिंग व दवाओं का छिड़काव होता है।
कानपुर, [विकास कुमार]। मच्छरजनित बीमारियों के लिहाज से कानपुर हाई रिस्क जोन में शामिल है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मेहरबानी और लोगों में जागरूकता की कमी की वजह से प्रदेश में कानपुर तीसरे नंबर पर है।
मंडल होने के बावजूद कानपुर में एंटोमोलॉजिस्ट (कीट विज्ञानी) की तैनाती कई दशकों से नहीं है। कानपुर व मंडल में कई सालों से मच्छरों पर शोध नहीं हुए हैं। बस मच्छरों की रोकथाम के लिए नाम की फॉगिंग व दवाओं का छिड़काव होता है।
कानपुर मंडल में नगर जिले के साथ ही कानपुर देहात, औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद व कन्नौज जिला शामिल हैं। इन जिलों में मच्छरों का प्रकोप अधिक होने की वजह से हजारों लोग मच्छर जनित रोगों से ग्रस्त हैं। मच्छरों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, नगर पालिका व जिला पंचायत विभाग के अधिकारी फॉगिंग, कीटनाशक व लार्वानाशक का छिड़काव कराते हैं।
लेकिन इसका असर मच्छरों पर या प्रभावित क्षेत्रों में कितनी देर रहता है, किस प्रजाति के मच्छर अधिक हैं और किन बीमारियों का प्रकोप है, इसकी जानकारी नहीं हो पाती। कुछ घंटे बाद मच्छर फिर से एक्टिव होकर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि कानपुर मंडल होने के बावजूद जिले में कई दशकों से एंटोमोलॉजिस्ट (कीट विज्ञानी) की तैनाती नहीं है। न ही कोई लैब है।
इस कारण मच्छरजनित बीमारी व मच्छरों की प्रजाति की जानकारी करना मुश्किल होता है। जांच के लिए मजबूरी में कानपुर से मच्छरों को पकड़कर उनकी प्रजाति की जानकारी के लिए लखनऊ स्थित लैब भेजा जाता है, जहां से रिपोर्ट आने में काफी समय लगता है। मच्छरों की माइक्रोस्कोपिक जांच और अलग-अलग मौसम में उनकी सक्रियता, काटने के तरीके आदि के बारे में भी शोध से काफी हद तक चीजें साफ हो जाती लेकिन ये सुविधा शहर में नहीं है।
ये होती है जानकारी
शोध के जरिये विशेषज्ञ यह पता लगाते हैं कि इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के प्रति मच्छरों की प्रतिरोधक क्षमता किस स्तर की है। मच्छर और लार्वा नाशक दवाओं के रूप में मलेरिया विभाग पायराथ्रेम, टेमीफॉस, मैलाथियान टेक्निकल और डीडीटी पाउडर का इस्तेमाल करता है। इन दवाओं का मच्छरों पर कितना असर पड़ता है, शोध न होने की वजह से मलेरिया विभाग के पास इसकी ठोस जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। शोध में यह भी पता चलता है कि किस क्षेत्र में किस प्रजाति के मच्छर ज्यादा हैं और वहां किन बीमारियों का प्रकोप अधिक है।
मादा मच्छर 50 से 60 को बनाती है निशाना
जिला मलेरिया विभाग के अधिकारी के मुताबिक अलग-अलग इलाकों में मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां होती हैं। मादा मच्छर की उम्र नर के मुकाबले में ज्यादा होती है। मादा एडीज एक बार में 50 से 100 अंडे देती है। यह एक दिन में एक किलोमीटर तक 50 से 60 लोगों को काटकर बीमार कर सकती है। जबकि नर एडीज हर 100 मीटर के दायरे में रहते हैं।
जिले में मिले रोगियों की संख्या
वर्ष डेंगू मलेरिया व चिकनगुनिया
2019 1681 426 0
2020 17 292 0
2021 687 15 0
2022 896 08 0
2023 300 25 13
मच्छरजनित बीमारियों के लिहाज से कानपुर हाई रिस्क श्रेणी में है। मंडल में मच्छरों पर शोध की फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है। मौजूद संसाधनों के हिसाब से ही मच्छरों पर कार्रवाई की जा रही है।- एसके सिंह, जिला मलेरिया अधिकारी
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