शाहजहांपुर: रोजा मंडी में धान बेचने वाले किसानों को आठ करोड़ की चपत
शाहजहांपुर, अमृत विचार। नमी ने धान के दाम गिरा दिए हैं। सरकारी केंद्रों पर 2183 रुपये में बिकने वाला मोटा धान 1750 और ग्रेड वाला धान 2203 की जगह पर 1800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। शहर की रोजा मंडी में अब तक लगभग दो लाख क्विंटल धान आढ़तों पर खरीदा जा चुका है जबकि सरकारी केंद्रों पर सिर्फ डेढ़ हजार क्विंटल ही खरीद हो सकी है।
400 रुपये प्रति क्विंटल के नुकसान के हिसाब से आकलन करें तो सिर्फ आठ दिन की खरीद में सिर्फ रोजा मंडी से जुड़े किसानों को आठ करोड़ रुपये का चूना लग चुका है। अगर किसानों को एमएसपी का लाभ मिला होता तो उन्हें आठ करोड़ का फायदा होता।
अब सवाल उठ रहा है कि जब अरसे से नमी सिर दर्द बनी हुई है तो इस समस्या के समाधान का कोई स्थाई हल क्यों नहीं निकाला गया। न तो किसान धान सुखाने की व्यवस्था कर सके हैं और न ही सरकार ने कोई पहल की है, जिससे किसानों को एमएसपी का लाभ आज भी नहीं मिल पा रहा है। बंडा, पुवायां और खुटार क्षेत्र में ज्यादातर किसानों का धान बिक चुका है और ज्यादातर आढ़तों पर ही बिका है।
अगर जिले भर के किसानों को एमएसपी न मिल पाने के कारण हुए नुकसान का आकलन किया जाए तो यह पैसा अरबों में बैठेगा। किसान मामलों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक यूं ही अरबों रुपये की चपत किसानों को लगती रहेगी उनकी जिंदगी खुशहाल नहीं हो सकेगी।
अधिकांश किसान ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते हैं, उनमें अपने अधिकारों को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं होती है। ऐसे में ज्यादा की सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी कम दामों पर उन्हें अपना धान बेचना पड़ता है। यह सिस्टम की बिडंबना ही है कि आज तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं खोजी जा सकी जिससे किसानों को एमएसपी मिल सके।
ज्यादा से ज्यादा किसान सरकारी केंद्रों पर धान सिर्फ झंझट से बचने के लिए नहीं बेच पाते हैं। तमाम किसानों का कहना है कि वह धान सेंटर पर लेकर पहुंचते हैं तो सेंटर इंचार्ज नमी ज्यादा होने की बात कहकर लौटा देते हैं। ऐसे में उनके सामने आढ़त या मिल के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता है।
किसानों के पास धान सुखाने को जगह नहीं
जिले में छोटे, बड़े और मझोलो तीनों तरह के किसान हैं। इनमें पांच एकड़ से कम वाले छोटे किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है। कुल चार लाख 60 हजार किसानों में से लगभग तीन लाख किसान छोटे बताए जाते हैं और इनमें से लाखों किसान एमएसपी पर धान नहीं बेच पाते हैं।
एमएसपी का लाभ न ले पाने वाले किसानों में छोटे, बड़े और मझोले सभी किस्म के किसान शामिल हैं। आश्चर्य की बात यह है कि अब तक किसी राजनीतिक संगठनों ने भी यह मुद्दा नहीं उठाया कि नमी के नाम पर किसानों को परेशान होने से बचाते हुए एमएसपी दिए जाने की व्यवस्था की जाए।
किसानों का कहना है कि उद्यमियों को परेशानी से बचाने के लिए जब सिंगल विंडो स्कीम लागू की जा सकती है तो किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं दी जा सकती है। किसानों के पास नमी वाले धान को सुखाने के लिए जगह नहीं होती है। बारिश व अन्य आपदाओं से भी वह धान को नहीं बचा पाता है। ऐसे में मजबूरी में यह कम दामों पर बेचता है। किसान धान सुखाने की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हैं तो सरकार को ही पहल करना चाहिए।
सालों से किसानों को नहीं मिल रही एमएसपी
ऐसा नहीं है कि पहली बार किसानों को एमएसपी का लाभ न मिल पा रहा हो। सालों से यही हाल है। बीते वर्ष भी लगभग इसी अनुपात में सरकारी और प्राइवेट खरीद में अंतर देखने को मिला था। किसानों का कहना है कि लगभग हर साल यही हाल रहता है। लगभग छह महीना पहले अरसे बाद ऐसा देखने को मिला जब सरकारी केंद्रों की अपेक्षा प्राइवेट में गेहूं के दाम ज्यादा रहे वरना हर साल तमाम किसानों को एमएसपी से कम पर गेहूं बेचना पड़ता था।
जिले में धान की खरीद चल रही है। ज्यादा से ज्यादा किसानों को एमएसपी मिले विभाग का यह प्रयास रहता है। तमाम किसानों के धान में नमी ज्यादा होती है और ज्यादा नमी वाला धान सरकारी केंद्रों पर नहीं खरीदा जा सकता है। ऐसे में किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं मिल पाता है---राकेश मोहन पांडेय, डिप्टी आरएमओ।
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