लोकसभा चुनाव 2024: विपक्षी एकता को लग सकता है उत्तर प्रदेश में झटका, अखिलेश ने बढ़ाई कानपुर में कांग्रेस के लिए मुश्किलें

Amrit Vichar Network
Published By Nitesh Mishra
On

विपक्षी एकता को लग सकता उत्तर प्रदेश में झटका है।

विपक्षी एकता को उत्तर प्रदेश में झटका लग सकता है। अखिलेश ने कानपुर में कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ाई।

कानपुर, अमृत विचार। मुलायम सिंह यादव की जयंती भले ही समाजवादी पार्टी की एकजुटता का संदेश दे रही हो पर यह विपक्षी एकता के लिए शुभ संकेत नहीं बताए जाते हैं। अखिलेश यादव को पीएम के रूप में देखने और पीएम का चेहरा के रूप में लोकसभा चुनाव में उतारने की इच्छा कांग्रेस का सपना चूर कर सकती है।

बसपा नेताओं ने हाल ही कहा था कि यदि मायावती को पीएम प्रत्याशी के रूप में विपक्षी दल उतारने को तैयार हों तो बसपा उनके फोल्ड में आकर चुनाव लड़ सकती है। यह समीकरण कम से कम कानपुर में लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने तो यहां तक कहा कि 40 सीटें जीतने पर पीएम पद के लिए अखिलेश यादव की दावेदारी मजबूत होगी।

पार्टी फिलहाल  65 सीटों पर लड़ने को दृढ़प्रतिज्ञ है। कानपुर में 2014 और 2019 के लोस चुनाव में दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस ने वोट बढ़ाया वो भी तब जब सपा-बसपा प्रत्याशी मैदान में था। पर यहां से सपा के तीन एमएलए, मेयर चुनाव में भारी संख्या में वोट हासिल करना सपा की दावेदारी को मजबूती देता है। फिलहाल कांग्रेसी भौंचक हैं।

सपा की यह इच्छा विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए खतरे का संकेत है। इस गठबंधन फिलहाल 28 छोटे-बड़े दल हैं। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि संयुक्त विपक्ष का एक प्रत्याशी होगा तो भाजपा को चुनौती देने की स्थिति होगी वरना मोदी को ललकारने का कोई सफल नतीजा नहीं होगा। माकपा पोलिट ब्यूरो की सदस्य पूर्व सांसद सुभाषिनी अली सहगल कहती हैं कि भाजपा को हराना है तो विपक्ष को एकजुटता दिखानी होगी।

यूपी में चार राजनीतिक दल मैदान में होंगे। सपा, कांग्रेस, रालोद और अपनादल (के)। इस पूरे प्रकरण में कुछ लोग सपा और कांग्रेस के बीच तल्खी भी देखते हैं। यही नहीं अंदरखाने में सपाई कहते हैं कि कांग्रेस और बसपा की गलबहियां भी एकता में अवरोध उत्पन्न कर रही है। अजय राय के कांग्रेस में यूपी का अध्यक्ष बनने के बाद तल्खी बढ़ी।

अखिलेश ने अजय राय को चिरकुट नेता तक कह डाला। पर अजय शाइस्तगी से आक्रामक बने रहे। इसके पीछे कांग्रेस के बड़े नेताओं का हाथ भी कहा जाता है। कांग्रेस और बसपा के बीच नजदीकियां भी एक कारण हो सकती है। मध्यप्रदेश के चुनाव में सपा ने 40 प्रत्याशी उतार दिए। 

अखिलेश खुद कहते हैं कि कांग्रेस से मध्यप्रदेश में उन्होंने छह सीटें मांगी थी पर उनकी बात को तवज्जो नहीं दी गयी। जब जीती हुई सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार आ गया तो फिर काहे की बातचीत। यही नहीं अखिलेश दो कदम आगे बढ़कर कांग्रेस के विरुद्ध यह भी बोल चुके हैं कि अगर विधानसभा में जीत मिल भी जाती है तो भी कोई भ्रम न पालें।

दूसरी तरफ सपा के प्रदेश मुख्यालय में कार्यकर्ताओं ने फ्यूचर बताते हुए अखिलेश की होर्डिंगें लगा डाली पर पार्टी ने प्रतिवाद नहीं किया। अखिलेश को पीएम बनाने की मांग उनकी पार्टी में सितंबर माह से ही जोर पकड़ रही है। छावनी से सपा एमएलए मोहम्मद हसन रूमी ने कहा कि छोटे नेताजी (अखिलेश यादव) में पीएम बनने की पूरी काबिलियत है।

ये भी पढ़ें- औद्योगिक निवेश को धरातल पर उतारने में रसातल में कानपुर मंडल, ग्राउंड ब्रेकिंग सेरमनी की तैयारी में मंडल की हिस्सेदारी दो फीसदी से भी कम

संबंधित समाचार