कानपुर: माघ मेला करीब और अफसर कागजों पर साफ कर रहे गंगा, जैविक विधि से शोधन कार्य जून से बंद
कानपुर, अमृत विचार। शहर में गंगा की सफाई पर 1810 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन अंधेरगर्दी का आलम यह है कि बरसात (जून) में बंद किए गए बायोरेमिडियेशन कार्य को नगर निगम की कंपनी ने अभी तक शुरू नहीं किया है। बारिश खत्म हुए काफी समय बीत गया लेकिन अफसर आंखें मूंदे बैठे हैं। नालों पर बायोरेमिडियेशन कार्य बंद होने से रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी गंगा में धड़ल्ले से जा रहा है। अब माघ मेला शुरू होने वाला है, ऐसे में सरकार तमाम कवायदें कर रही है लेकिन स्थानीय अफसर कागजों पर गंगा साफ कर रहे हैं।
शहर के अलग-अलग जगहों पर गंगा से मिलने वाले कुल 16 नाले हैं। इनमें से दस नालों को पूरी तरह से टैप्ड कर दिया गया है जबकि दो आंशिक रूप से बंद हैं, वहीं चार नाले अभी भी अंटैप्ड हैं। अंटैप्ड नालों में फिलहाल जैविक विधि से शोधन (बायोरेमिडियेशन) कर गंगा नदी में पानी छोड़ा जा रहा था। लेकिन जून से बायोरेमिडियेशन कार्य बंद पड़ा है। इसलिए अनटैप्ड रानीघाट नाला, सत्ती चौरा नाला, गोलाघाट नाला, डबका नाला से झागनुमा गंदा पानी सीधे गंगा में जा रहा है।
डबका नाले के पास तो बायोरेमिडियेशन प्लांट ही गायब हो गया है। नगर निगम की ओर से बायोरेमिडियेशन (जैविक विधि से शोधन) कार्य में बरती जा रही लापरवाही गंगा में हानिकारक तत्वों को और बढ़ा रही है। इसके अलावा रोक के बावजूद गंगा नदी में घरों का सीवर भी जा रहा है। गंगा घाट के किनारे बनी बस्तियों की सीवर लाइनों को मुख्य लाइनों से नहीं जोड़ा गया है, जिससे समस्या बढ़ रही है।
अनटैप्ड नाले बढ़ा रहे मुसीबत
शहर में अंटैप्ड चार नाले रानीघाट नाला, सत्ती चौरा नाला, गोलाघाट नाला, डबका नाला पर बायोरेमिडियेशन का कार्य नगर निगम द्वारा अनुबंधित संस्था बायो आक्सीग्रीन टेक्नोलॉजी प्रा. लि. कंपनी कर रही है। बरसात में जलप्रवाह बढ़ जाने से बायोरेमिडियेशन प्लांट बह जाने का खतरा होता है इसलिए जून में यह कार्य रोक दिया गया था। निमयानुसार इसे सितंब मध्य में शुरू हो जाना था लेकिन दिसंबर बीत रहा, अभी तक कार्य शुरू नहीं हुआ। नालों का अशोधित पानी सीधे गंगा नदी में जा रहा है।
जानें, बायोरेमिडियेशन क्या है
बायोरेमिडियेशन टेक्नोलॉजी में जैविक विधि से नाले के पानी को साफ किया जाता है। इस टेक्नोलॉजी में कुछ ऐसे घास और पौधे होते हैं, जिनकी जड़ों में बैक्टीरिया पैदा होते हैं। बायोरिमेडिएशन टेक्नोलॉजी में केना घास समेत अन्य घासों को नालों में प्लांट के जरिये लगाया जाता है। इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया नालों में बहने वाली गंदगी को खाते हैं, साथ ही जल सफाई में काफी सहायक होते हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) में भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
बिठूर से फतेहपुर के बीच गंगा बहुत प्रदूषित
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बिठूर से फतेहपुर के बीच तक गंगा का पानी बुरी तरह प्रदूषित है। पानी में जहां पीएच वैल्यू, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा मिली है तो वहीं, रासायनिक ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) और कोलीफॉर्म बैक्टीरिया भी गंगा नदी के पानी में जहर की तरह घुल रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जल गुणवत्ता प्रबंधन के डायरेक्टर व विभाग प्रमुख अजीत विद्यार्थी ने इसे चिंताजनक बताया है।
नंबर गेम ::::::
1810 करोड़ कानपुर में गंगा सफाई में खर्च
63 करोड़ से 12 नालों को किया गया टैप
04 नाले अभी भी अनटैप, गंदा पानी गंगा में
73 लाख हर साल खर्च हो रहा बायोरेमिडिएशन पर
418 करोड़ पंपिंग स्टेशन बनाने में खर्च किए
अनटैप्ड नालों में जैविक शोधन कार्य नहीं हो रहा है। कई जगह नालों की टैपिंग भी क्षतिग्रस्त है। जब सीवर का बहाव ज्यादा होता है तो गंदगी निकलकर गंगा में जाती है। यह कार्य मशीनों से नहीं होता इसलिए समस्या हो रही है। कहीं न कहीं कंपनी की ओर से लापरवाही बरती जा रही है...,अमित मिश्रा , क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
यदि जल्द कंपनी कार्य शुरू नहीं करती तो मौके पर जाकर कार्रवाई करूंगी। मैं खुद सफाई अभियान चलवाने जा रही हूं। गंगा का आंचल मैला न हो यह हम सबकी जिम्मेदारी है...,प्रमिला पांडेय, महापौर
नगर निगम की योजनाएं कागजों पर रहती हैं। बायोरेमिडियेशन भी कागजों पर हो रहा है। सब बंदरबांट है। तभी शहर में गंगा लगातार प्रदूषित हो रही हैं जबकि माघ मेला करीब है...,अमिताभ बाजपेई, सपा विधायक।
