वित्त आयोग की राह

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Published By Vishal Singh
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केंद्र सरकार ने हाल ही में 16 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष की घोषणा कर दी है। आयोग का अध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया को बनाया गया है। पनगढ़िया नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रह चुके हैं। वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित किया जाता है। इसका काम केंद्र और राज्यों की वित्तीय स्थितियों को विस्तार से जानना समझना, उनके बीच टैक्स के बंटवारे की सिफारिश करना और राज्यों के बीच टैक्स के वितरण की रूपरेखा तय करना है।

हालांकि संविधान ये कहता है कि केंद्र सरकार समय-समय पर वित्त आयोग को कोई भी काम की जिम्मेदारी सौंप सकता है। पंद्रहवें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर 2017 को किया गया था। आयोग ने 2020-21 से 2025-26 तक छह साल की अवधि के लिए अपनी सिफारिशें दीं थीं। वित्त आयोग को अपनी सिफारिशें देने में आम तौर पर लगभग दो साल लगते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 280 के खंड (1) के अनुसार, वित्त आयोग का गठन हर पांचवें वर्ष या उससे पहले किया जाता है। 16वें वित्त आयोग के एडवांस सेल का गठन 21 नवंबर 2022 को वित्त मंत्रालय में किया गया था, ताकि आयोग के औपचारिक गठन तक प्रारंभिक कार्य की निगरानी की जा सके। केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स का विभाजन16 वां वित्त आयोग का पहला और सबसे जरूरी काम होगा केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स से होने वाली आमदनी का बंटवारा और फिर राज्यों के बीच किस तरह से धन का बंटवारा होगा, इसकी योजना तैयार करना शामिल रहेगा।

16वें वित्त आयोग के लिए राज्यों की संख्या अधिक है,  क्योंकि केंद्रीय राजकोषीय घाटा रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, कर राजस्व वृद्धि के प्रयास विफल रहे हैं और कुल सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में वृद्धि नहीं हुई है। 16वें वित्त आयोग को अंतर-सरकारी राजनीतिक और संस्थागत विवादों के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जानकारों के मुताबिक राज्यों के बीच कर राजस्व के विवेकपूर्ण आवंटन और वस्तु एवं सेवा कर को और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए उस पर नए सिरे से विचार करना होगा।

आयोग आपदा प्रबंधन पहल के वित्तपोषण पर वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा कर सकता है और उचित सिफारिशें कर सकता है। 16वें वित्त आयोग को गैर-योग्यता सब्सिडी के विषय की विस्तार से जांच करनी चाहिए। राज्यों के साथ राजकोषीय घाटे (एफडी) को सीमा के भीतर बनाए रखने में सख्त होना चाहिए। संसाधन हस्तांतरण की समग्र योजना में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधानों की समानता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।