Kanpur: भाजपा ने मनाई कल्याण सिंह की पुण्यतिथि, साधा पिछड़ा समीकरण, मिलेगा 2024 चुनावों में लाभ?
कानपुर में भाजपा ने कल्याण सिंह की 92वीं पुण्यतिथि मनाई।
कानपुर में भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया और उसके जातीय जनगणना के मुद्दे को लेकर सतर्क है। इसी के चलते कल्याण सिंह की 92वीं पुण्यतिथि संगठन ने शुक्रवार को बड़े जोर-शोर से मनाई।
कानपुर, (महेश शर्मा)। राम मंदिर की स्थापना से राममय माहौल के बावजूद भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया और उसके जातीय जनगणना के मुद्दे को लेकर सतर्क है। इसी के चलते कल्याण सिंह की 92वीं पुण्यतिथि संगठन ने शुक्रवार को बड़े जोर-शोर से मनाई। क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल कानपुर देहात और औरेया में मौजूद रहे और बाकी जिलों में आयोजित कार्यक्रमों का हाल लेते रहे।
कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में दस लोकसभा सीटें आती हैं। इनमें फतेहपुर सीट से साध्वी निरंजन ज्योति, बांदा से आरके पटेल और फर्रुखाबाद से मुकेश राजपूत ही पिछड़ी जाति से आते हैं। इटावा और जालौन-गरौठा संसदीय सीट आरक्षित है। बाकी सीटें समान्य हैं। भाजपा का लक्ष्य है कि 2019 के चुनाव की तरह अबकी बार भी सभी सीट जीती जाएं।
इसके लिए पार्टी पिछड़ी जाति के प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाने पर मंथन कर रही है। पिछड़ी जाति के वोटरों में 2014 के बाद से बदलाव आया है। वह भाजपा की ओर आकर्षित हुआ है, जबकि एक दशक पहले पिछड़े मतों पर क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था। इस बार जातीय जनगणना विपक्ष का मुद्दा है। इसे लेकर लोकसभा चुनाव 2024 में प्रदेश में एक बार फिर पिछड़ी जाति चुनावी राजनीति के केंद्र में आ गयी है। प्रदेश की सभी पार्टियां पिछड़ी जाति को केंद्र में रखते हुए एजेंडा सेट कर रही हैं।
प्रदेश में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का है। सूबे में 52 फीसदी पिछड़ी जातियों की आबादी बतायी जाती है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव जातियों को अतिपिछड़े वर्ग के तौर पर माना जाता है। ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय की है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता एजेंसी के सर्वे के हवाले से बताते हैं कि बीते एक दशक से पार्टी ने पिछड़े वोटों में खासी पैठ बनायी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 34 फीसदी ओबीसी वोट मिले और 2019 में 44 फीसदी ओबीसी ने बीजेपी को वोट दिया।
दूसरा आंकड़ा यह है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा और बाकी क्षेत्रीय दल सिर्फ 27 फीसदी वोट पा सके। जबकि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में केवल 10 फीसदी यादव मतदाताओं ने, 57 फीसदी कोइरी-कुर्मी मतदाताओं और 61 फीसदी अन्य ओबीसी मतदाताओं ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को वोट किया था। अगर सीटों की बात करें तो 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 315 सीटें हासिल की तो वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 65 सीटें हासिल की थीं।
