राम नाम की यातनाएं देती रही सपा सरकार : मंदिर के संकल्प में नहीं बनवाया खुद का आशियाना

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Published By Jagat Mishra
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रोंगटे खड़े कर देती है बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुख्य आरोपी संतोष दूबे की दर्द भरी दस्तान

सुनील कुमार मिश्र / लखनऊ, अमृत विचार। समाजवादी पार्टी की सरकारों ने भगवान राम के बदले जीवन भर यातनाएं दी। पहले मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री मकान से लेकर खलिहान तक कुर्क करवा दिया। उनके बाद बेटे अखिलेश ने बागडोर संभाली तो उन्होंने भी राम के नाम पर जरा भी रहम नहीं दिखाया। प्रदेश की कोई जेल नहीं बची जहां कैद न रखा गया हो। बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुख्य आरोपी रहे संतोष दूबे की ऐसी दर्द भरी दास्तान रोंगटे खड़ी कर देती है। उनका कहना है कि अब जब प्रभु श्रीराम अपने घर में प्रवेश करने जा रहे हैं तो खुद के मकान की भी मरम्मत करवाने जा रहा हूं।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुख्य आरोपी रहे संतोष दूबे ने 1984 में संकल्प लिया था कि जबतक रामलला का मंदिर नहीं बन जाता अपना नया मकान नहीं बनवाएंगे। उस घटनाक्रम को याद करते हुए बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। उन्होंने कारसेवकों पर गोलियां चलवाई। उन्हें चार गोली लगी और उनके करीब आधा दर्जन से ज्यादा सहयोगी शहीद हो गए। लेकिन चार गोली लगने के बाद भी उनकी सांसे नहीं थमी क्योंकि शायद भगवान ने यह सुखद दिन देखने का सौभाग्य तय कर रखा था। वो गुजरे दिनों की उन भयावह तस्वीरों को याद करके सिहर उठते हैं। 

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प्रभु श्रीराम की माया से ही टिकी रही जर्जर मकान की छत
संतोष दूबे ने बताया कि 1984 में ही उन्होंने राम मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था। इसी के साथ यह भी शपथ ली थी कि जब तक प्रभु को उनका घर नहीं मिलता अपने लिए भी कोई मकान नहीं बनाएंगे। अयोध्या में पुश्तैनी मकान इतना पुराना हो चुका था कि दीवारों की ईंटे उखड़ने लगी थी। परिजन हर रोज इस दहशत में दिन गुजार रहे थे जाने कब छत ढह जाए। हालात ऐसे थे कि इस मकान के बाद रहने का कोई ठिकाना नहीं बचता। उनका कहना है कि प्रभु श्रीराम की ही माया है कि अबतक इन जर्जर दीवारों पर टिकी छह नहीं ढही। 

ताने सुनकर कान पक गए तो तैयार की ग्रामीणों की फौज
बाबरी मस्जिद विध्वंस की योजनाओं को साझा करते हुए संतोष बताते हैं कि उनके संकल्प की चर्चा पूरे जिले में हो गई थी। थोड़े दिनों बाद लोगों ने ताने मारने शुरू कर दिए। जिस रास्ते से गुजरते थे लोग बस एक ही बात कहते “गिर गई मस्जिद, बन गया मंदिर”। संतोष कहते हैं कि इन तानों ने भीतर ही भीतर गुस्से को बढ़ावा दिया। इसके बाद तय कर लिया कि जान जाए या रहे लेकिन अब मस्जिद गिराकर रहेंगे। बताते हैं कि इसके लिए गांवों से करीब पांच हजार ऐसे लोगों को चुना गया जो फुर्तीले और ताकतवर थे। उन्हें रात-रात भर ट्रेनिंग दी गई कि किस तरह भीड़, पुलिस और मीडिया से बचते हुए मस्जिद के उपर चढ़कर उसे तोड़ना है। 

डराने के लिए जुटाई तलवारें, ढहाने के लिए बाकी औजार
संतोष बताते है कि योजना के अनुसार औजार जुटाए गए। इसमें विरोध करने वालों को डराने के लिए तलवारें इकठ्ठा की गई। मस्जिद को तोड़ने के लिए सब्बल और रस्सा जुटाया गया। कुछ चुनिंदा ग्रामीणों को रस्से के सहारे मस्जिद के गुंबद तक चढ़ने की ट्रेनिंग दी गई। योजना पूरी होने के बाद देश भर के कारसेवकों से अयोध्या पहुंचने की अपील की गई। कारसेवकों का जत्था अयोध्या की तरफ कूच करने लगा तो भाजपा के बड़े नेताओं का दल पहले की वहां पहुंच गया। ये नेता शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे। हालात ऐसे थी कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का भी डेरा यहां पड़ चुका था। 

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नेताओं की आवाज दबाने के लिए माइक के तार काटने पड़े
संतोष दूबे के मुताबिक मस्जिद गिराने का समय करीब आता जा रहा था। 1992 के दिसंबर की शुरुआत से ही नेताओं ने मंच लगाकर उनकी टोली को उपद्रवी कहना शुरू कर दिया। 6 दिसंबर को जब योजनाबद्ध तरीके से उनका दस्ता मस्जिद की ओर बढ़ने लगा तो नेताओं के भड़काऊ भाषण को रोकना जरुरी हो गया। इसके लिए उनकी टीम ने माइक के तार काट दिए। विदेशी मीडिया पूरी दुनिया में कारसेवकों की नकारात्मक छवि पेश कर रही थी। इसलिए मजबूरन उनके कैमरे छीनने पड़े। यह सब करते हुए उनका दल मस्जिद के गुंबद तक पहुंच गया और वो मकसद में कामयाब हो पाए।

परिवार पर संकट गहराने लगा तो करना पड़ा आत्मसर्मपण
संतोष दूबे के अनुसार मुलायम सिंह यादव की सरकार ने मस्जिद विध्वंस के लिए 36 मुख्य आरोपियों को नामजद किया। इसमें पहला नाम उनका था। घटना के बाद गोलीकांड में घायल होने के बाद भी वो फरार होने में कामयाब रहे। लेकिन सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए अयोध्या  और गांव के मकान को कुर्क करवा दिया। पुलिस ने गांव का मकान ध्वस्त कर दिया और आयोध्या के मकान से चम्मच से लेकर चारपाई तक उठा ले गई। परिवार पर संकट गहराता देख उन्हें मजबूर होकर आत्मसमर्पण करना पड़ा। उनका कहना है कि अब जब सारे संकट दूर हो चुके हैं और प्रभु के लिए लिया गया प्रण भी पूरा हो रहा है, तो पुश्तैनी मकान की मरम्मत का काम भी जल्द शुरू करवाने वाले हैं।

जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद भी नहीं बनवाया मकान
संतोष दूबे अयोध्या के जमुनियाबाग में दो बेटों व पत्नी के साथ रहते हैं। 1984 मे वो 10वीं की पढ़ाई कर रहे थे। 30 जनवरी 1984 को विश्व हिंदू परिषद की संकल्प सभा में मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया था। तभी से मंदिर आंदोलन से जुड़ गए। आंदोलन के दौरान ही 2 नवंबर 1990 में कारसेवा करते हुए उन्हें चार गोलियां भी लगीं। दिसंबर 1992 को गुंबद तोड़ने के लिए जिन पांच हजार कारसेवकों को अपने साथ जोड़ा उसमें एक हजार महिलाएं भी शामिल थी।  

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उन्होंने बताया कि तत्कालीन सपा सरकार ने उनपर एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगा दिया। गया। जेल में उन्हें हाई सिक्योरिटी या तन्हाई वाली बैरकों में रखा जाता था जिसमें कुख्यात अपराधियों को बंद किया जाता है। जेल में रहने के दौरान उनकी परिजनों या किसी से मुलाकात भी नहीं होने दी जाती थी। सरकार ने आयोध्या के जमुनियाबाग और बीकापुर में गांव के मकान की कुर्की करा दी। लेकिन उन्होंने अपना संकल्प नहीं तोड़ा। संतोष दूबे ने बताया कि वह बीकापुर से 2010 में जिला पंचायत सदस्य चुने गए फिर भी अपने प्रण पर टिके रहे और मकान नहीं बनवाया। अब वह प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम मंदिर का दर्शन करके ही मकान बनवाएंगे।

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