लखीमपुर-खीरी: दो माह चला अभियान... सैकड़ों गोवंश सड़कों पर घूमने को मजबूर, 10 जनवरी तक संरक्षित करने का था दावा 

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Published By Vikas Babu
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लखीमपुर-खीरी, अमृत विचारः जनपद में निराश्रित गोवंशीय पशुओं को गोआश्रय स्थलों में भेजकर संरक्षित करने के लिए नवंबर से दिसंबर तक विशेष अभियान चलाया गया, लेकिन अभी भी सैकड़ों गोवंशीय पशु निराश्रित हाल में सड़कों व खेतों में घूम रहे है।

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सड़क पर जोर-आजमाइश करते दो सांड।

कड़ाके की ठंड के कारण निराश्रित गोवंशीय पशु असमय बीमारियों व मौत का शिकार भी हो रहे हैं। वहीं इन पशुओं के सड़क पर घूमने के कारण सड़क हादसे भी अक्सर होते रहते हैं। हालांकि पशुपालन विभाग के अनुसार नवंबर 2023 से 10 जनवरी 2024 तक 5013 निराश्रित गोवंश को गोआश्रय स्थलों में संरक्षित कराया गया है। 

जनपद में दो माह का अभियान शुरू होने से पहले पशुपालन विभाग द्वारा कराई गणना के मुताबिक जिले भर में करीब 3500 निराश्रित गोवंशीय पशु थे, जिन्हें संरक्षित करने के लिए गोआश्रय स्थलों की संख्या 106 से बढ़ाकर 115 की गई है। एक नवंबर 2023 से 31 दिसंबर 2023 तक जिले भर में कुल 4023 निराश्रित गोवंशीय पशुओं को गोआश्रय स्थलों में संरक्षित किया गया। 

इसके बाद भी सड़कों से निराश्रित गोवंशीय पशुओं की संख्या कम नहीं हुई, जिससे शासन द्वारा इस अभियान को 31 जनवरी 2024 तक बढ़ाया गया है। लिहाजा एक जनवरी से 10 जनवरी 2024 तक 990 निराश्रित गोवंशीय पशुओं को गोआश्रय स्थलों में संरक्षित कराया गया और गोआश्रय स्थलों की संख्या 115 से बढ़ाकर 122 की गई है।

गोआश्रय स्थलों की संख्या बढ़ने के साथ ही संरक्षित किए जाने वाले गोवंशीय पशुओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर सड़क व खेतों से निराश्रित पशुओं की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है, जिससे विभागीय अभियान पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। 

अनुमान से अधिक गोवंशीय पशुओं को किया संरक्षित 
बता दें कि जनपद में अभियान चलाए जाने से पहले तक निराश्रित गोवंश को संरक्षित करने के लिए 108 गोआश्रय स्थल संचालित थे, जिनमें 29068 गोवंश संरक्षित थे। जबकि निराश्रित गोवंशीय पशुओं की संख्या 3500 बताई जा रही थी।

एक नवंबर 2023 से 10 जनवरी 2024 तक 5013 निराश्रित गोवंशीय पशुओं को संरक्षित किया गया है। इससे वर्तमान में 122 गोआश्रय स्थलों में कुल 34530 गोवंशीय पशु संरक्षित किए जा चुके हैं। अनुमान से अधिक गोवंशीय पशुओं को संरक्षित किए जाने के बाद भी निराश्रित पशु सड़कों पर घूमते पाए जा रहे हैं। 

गोआश्रय स्थलों पर प्रधान व सचिव की मिलीभगत से किया जा रहा खेल 
जनपद में गोआश्रय स्थलों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनमें संरक्षित किए गए गोवंशीय पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन निराश्रित गोवंश की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। इसको लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि गोआश्रय स्थलों में पशुओं को संरक्षित किए जाने के बाद भी निराश्रित गोवंश की संख्या आखिर कम क्यों नहीं हो रही। विभागीय सूत्रों की माने तो गोआश्रय स्थलों पर संबंधित प्रधान व सचिवों द्वारा खेल किया जा रहा है। 

मसलन निराश्रित गोवंश को गोआश्रय स्थल में लाने के बाद रात में गुपचुप तरीके से छोड़ दिया जाता है। उनके स्थान पर जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने चहेतों के पालतू गोवंशीय पशुओं को कुछ समय के लिए गोआश्रय स्थलों में दाखिल करा दिया जाता है। जब गोवंश दूध देने की स्थिति में आता है, तो उसे बाहर निकाल लिया जाता है। इस तरह लोग अपने पालतू गोवंश को अपने पास से चारा खिलाने के बजाय सरकारी चारा खिलाकर खुद दूध का दोहन कर रहे हैं। 

सड़क व खेतों में घूम रहे निराश्रित गोवंश को गोआश्रय स्थलों में संरक्षित करने के लिए नवंबर से लगातार अभियान चलाकर 5013 पशुओं को संरक्षित कराया गया है। सभी ब्लॉकों में अभियान 31 जनवरी 2024 तक चलाया जाएगा, जिसमें संबंधित ब्लॉकों के बीडीओ, नायब तहसीलदार, एडीओ पंचायत और पशु चिकित्साधिकारी की ड्यूटी लगाई गई है। अभियान में लापरवाही बरतने वाले अधिकारी-कर्मचारी के विरूद्ध कार्रवाई की जाएगी--- डॉ सोमदेव सिंह चौहान, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी।

कागजों में हो रही खानापूर्ति, सड़कों पर घूम रहे छुट्टा पशु 
भानपुर- सरकार ने जहां सभी निराश्रित गोवंशीय पशुओं को गोआश्रय स्थलों में संरक्षित कराने के निर्देश के बाद भी किसानों को छुट्टा पशुओं से निजात नही मिल पा रही है। ब्लाक बिजुआ क्षेत्र के सड़कों से लेकर खेतों तक लोग छुट्टा पशुओं से परेशान हैं। छुट्टा पशु खेतों में जहां फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो वहीं सड़कों पर डेरा डाले रहते हैं। हालत यह है कि रात के अंधेरे में सड़कों पर संभलकर नहीं चले, तो छुट्टा पशुओं से टकराना तय है। 

प्रशासन की ओर से बनाए गए अस्थाई गोवंशीय आश्रय स्थलों से लोगों को उम्मीदें थी कि इनसे निजात मिलेगी पर ऐसा हो नहीं पाया। खेतों से लेकर सड़कों पर छुट्टा पशुओं का झुंड अभी भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बना है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेहूं, गन्ना व बाजरे आदि की फसलें खेतों में लहलहा रही हैं, जिसे दिन रात छुट्टा पशु रौंद रहे हैं। इससे किसानों को दिन हो या रात खेतों की रखवाली भी करनी पड़ रही है। 

प्रशासन की ओर से छुट्टा पशुओं को पकड़कर गोवंश आश्रय स्थलों में रखने के सख्त फरमान के बावजूद किसानों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। फसल से किसानों को काफी उम्मीदें रहती हैं, लेकिन छुट्टा पशु पिछले कई सालों से उनकी उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं।

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