इलाहाबाद हाईकोर्ट: जिला न्यायालयों के प्रति नागरिकों में बढ़ रही अवमानना की प्रवृत्ति

इलाहाबाद हाईकोर्ट: जिला न्यायालयों के प्रति नागरिकों में बढ़ रही अवमानना की प्रवृत्ति

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय की कार्य प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मामलों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में जिला न्यायाधीशों में डर रहता है, क्योंकि इससे प्रशासनिक शिकायतें और बाद में स्थानांतरण की संभावना बनी रहती है। यद्यपि सिविल न्यायालय के संबंध में नागरिकों के रवैये को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह सत्य है कि सिविल न्यायालय विभिन्न कारणों से सुस्त हो गए हैं, जिनमें हड़ताल भी शामिल है, जो न्यायिक समय को छीन लेती है।

कोर्ट ने आगे कहा कि नागरिकों के मन में जिला न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के प्रति एक दृढ़ अनिच्छा, एक प्रकार की झुंझलाहट और अवमानना उत्पन्न हो गई है। इन सभी कारणों ने सिविल कोर्ट को ऐसे व्यक्ति के लिए निराशापूर्ण बना दिया है जो त्वरित राहत चाहता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने माया देवी की ‌याचिका को खारिज करते हुए की। याचिका में संपत्ति पर कब्जा वापस देने और निषेधाज्ञा के लिए याची ने कोर्ट से जिला मजिस्ट्रेट,  एसडीएम, पुलिस कमिश्नर और एसएचओ, कानपुर नगर को निर्देश देने की मांग की थी।

कोर्ट ने सिविल कोर्ट की शक्तियों को व्याख्यायित करते हुए बताया कि न्यायालय का क्षेत्राधिकार व्यापक आयाम का है और ऐसी अदालतों द्वारा दी जाने वाली कोई भी राहत केवल उसी अदालत द्वारा दी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट द्वारा सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को नहीं छीना जा सकता है। नागरिकों की सुविधा के आधार पर जो प्राधिकारी अक्षम हैं या जिनके पास क्षेत्राधिकार विशेष नहीं है, उनसे राहत मांगने के लिए संपर्क नहीं किया जा सकता है।

मौजूदा मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि याची ने जिला न्यायालय के अतिरिक्त हर उस प्राधिकारी से संपर्क किया था, जिसके पास इस मामले में कोई क्षेत्राधिकार नहीं था। इससे यह सिद्ध होता है कि जिला न्यायालय में नागरिकों का विश्वास कम हो रहा है।

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