कासगंज: आधुनिकता के दिखावे में अपने अस्तित्व को खोज रहा देशी फ्रिज, घड़े का पानी होता है फायदेमंद

Amrit Vichar Network
Published By Vishal Singh
On

जागरूक लोग करते हैं घड़े के जल से अपना कंठ शीतल

दीपक मिश्र, मोहनपुरा। आधुनिकता के दिखावे की प्रतिस्पर्धा में लोग सही और गलत का ठीक से चुनाव नहीं कर पाते। यह दिखावा इस कदर हावी हो चला है कि स्वास्थ्य के लिए लोगों में जागरूकता का भी अभाव मिलता है। इसी कारण संकोचवश हितकर और अहितकर में उचित चुनाव न होने के कारण शारीरिक बीमारियों को बढ़ावा मिलने लगता है। प्राचीन समय में मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपभोग करता था और अधिक स्वस्थ, निरोगी एवं दीर्घायु रहता था। धीरे धीरे समय के परिवर्तन के साथ आधुनिकता का आगमन हुआ और प्राकृतिक संसाधनों का रूप मशीनी संसाधनों ने ले लिया।

हम बात कर रहे हैं मिट्टी से निर्मित एक ऐसे ही प्राकृतिक संसाधन 'घड़े' की जो प्राचीन समय का देशी फ्रिज हुआ करता था जिसमें गर्मी के मौसम में प्राकृतिक रूप से जल शीतल होकर कंठ की प्यास बुझाता था। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में लोगों का रुझान घड़े से हटकर बिजली चलित मशीनी फ्रिज की तरफ हो गया, जिसमें कृत्रिम रूप से पानी ठंडा होता है। जिसका सेवन करने से गले की ग्रंथियों और आंतों का तापमान एकदम से गिर जाता है जो स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आजकल बाजार में तरह तरह सजावटी एवं आकर्षक घड़े, मटके और सुराही उपलब्ध हैं। लोगों की सहूलियत के लिए घड़ों में टोंटी भी लगाकर दी जाती है। जानकारों में अनुसार गर्मियों में फ्रिज के पानी की जगह घड़े के पानी को पीना उचित एवं स्वास्थ्यप्रद है। 

मिट्टी से निर्मित घड़े के पानी पीने के लाभ
मिट्टी स्वयं एक बेहतरीन शोधक पदार्थ है। मिट्टी से निर्मित घड़े में पानी रखने से उसमें मौजूद अशुद्धियां दूर होकर उसका शोधन हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं -
-अशुद्धियां दूर होने से शरीर को आवश्यक मिनरल्स की पूर्ति होती है।
- घड़े का पानी एक निश्चित स्तर तक ही ठंडा होता है जो स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है।
- घड़े के जल की प्रकृति क्षारीय होती है, जिससे शरीर का पी एच स्तर सही रहता है, 
- घड़े का पानी रसायन मुक्त होता है जो शरीर से हानिकारक टॉक्सिंस को बाहर निकालने के साथ मेटाबॉलिज्म को बेहतर करता है।
- गर्मी में शरीर के तापमान को नियंत्रित रखकर शीतलता प्रदान करता है जिससे लू से बचाव होता है 

घड़े और फ्रिज में पानी ठंडा होने की प्रक्रिया
घड़े अथवा मटके की दीवारें मिट्टी से बनी होती हैं जो सरंध्री होती हैं जिस कारण पानी का हल्का हल्का रिसाव होता रहता है। बाहर का तापमान अधिक होने के कारण जल का वाष्पीकरण होने लगता है जिसके लिए आवश्यक ऊष्मा अंदर के जल से ली जाती है। इस प्रकार घड़े के अंदर जमा पानी का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा हो जाता है। वहीं बिजली चालित रेफ्रिजरेटर में एक तरल पदार्थ प्रवाहित होता है जिसे लिक्विड रेफ्रिजरेंट कहते हैं। जब इस लिक्विड का वाष्पीकरण होता है, तब ठंडक पैदा होती है। कंप्रेशर के माध्यम से वाष्पीकरण होकर यह गैस में परिवर्तित हो जाता है और फिर पुनः गैस से लिक्विड में। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है और इस प्रकार कृत्रिम रूप से फ्रिज के अंदर रखी वस्तुएं ठंडी हो जाती है।

कोरोना काल में बढ़ी थी घड़े की मांग
भारत में वर्ष 2020 में फैली कोरोना महामारी के दौरान देशी फ्रिज यानी घड़े की मांग बढ़ी थी क्योंकि जानकारों ने उस समय एसी, फ्रिज आदि उपकरणों को इस्तेमाल न करने सलाह दी थी। इसी कारण गर्मी के मौसम में लोगों का रुझान वापस प्राकृतिक संसाधनों की तरफ हुआ और घड़े के शीतल जल से लोगों ने अपने कंठ को शीतलता दी। इससे कुंभकारों और घड़े के विक्रेताओं को अच्छा मुनाफा हुआ था।

मिट्टी स्वयं बेहतरीन शोधन कार्य करती है। आयुर्वेद के अनुसार घड़े का जल अमृत समान माना जाता है, जो शरीर के पी एच स्तर को संतुलित रखता है जिससे कई बीमारियों का बचाव होता है। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग करना चाहिए- डा. राघवेंद्र दुबे, आयुर्वेद चिकित्सक।

प्राचीन समय में हमारे पूर्वज गर्मियों में घड़ा, मटका, सुराही आदि प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते थे। इनमें संचित जल न केवल कंठ को शीतलता देता था अपितु स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता था। आजकल की युवा पीढ़ी को भी रेफ्रिजरेटर के बजाय घड़े का पानी पीना चाहिए - सत्य प्रकाश मिश्र, शिक्षाविद सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य।

ये भी पढ़ें- कासगंज: नगर पंचायत सहावर के सभासद देंगे सामूहिक इस्तीफा, जानिए क्या है मामला?

संबंधित समाचार