औषधीय गुणों से भरपूर है खट्टा-मीठा हिसालू 

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमृत विचार। कुमाऊं और गढ़वाल का पहाड़ी क्षेत्र अनेक प्राकृतिक जड़ी-बूटियों एवं औषधीय गुणों से युक्त फलों से भरा पड़ा है। काफल की तरह ही जेठ-असाड़ माह में पहाड़ की  धरती पर छोटी कांटेदार झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार हिसालू भी स्वादिष्ट फल है।

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काफल की तरह ही हिसालू भी औषधिय गुणों से भरपूर माना जाता है। खट्टे और मीठे स्वाद से भरा हिसालू इतना कोमल होता है कि हाथ में पकड़ते ही टूट जाता है। जीभ में रखने से पिघलने लगता है। इसका लेटिन नाम रुबस एलिपटिक्स जिसमें एंटी ऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होने की वजह से यह फल शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है। इसके जड़ से प्राप्त रस का प्रयोग करने से पेट सम्बंधित बीमारियां दूर हो जाती है। इसके फलों से प्राप्त रस बुखार, पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में फायदेमंद होता है। 

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हिसालू फलों में प्रचुर मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होने की वजह से यह फल शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है। इसकी जड़ को बिच्छुघास की जड़ एवं जरुल की छाल के साथ कूटकर काढा बनाकर बुखार के रोगी के लिए रामबाण दवा है।

इसकी पत्तियों की ताजी कोपलों को ब्राह्मी की पत्तियों एवं दूर्वा के साथ मिलाकर स्वरस निकालकर पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है। इसके फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार,पेट दर्द,खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही फायदेमंद होता है। छाल का प्रयोग तिब्बती चिकित्सा पद्धतिमें भी सुगन्धित एवं कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है।  हिसालू फल के नियमित उपयोग से किडनी-टॉनिक के रूप में भी किया जाता है। यही नहीं इसका प्रयोग मूत्र आना (पोली-यूरिया ) , योनि-स्राव,शुक्र-क्षय एवं शय्या-मूत्र ( बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करना ) आदि की चिकित्सा में भी किया जाता है |

 हिसालू जैसी वनस्पति को सरंक्षित किये जाने की आवश्यकता को देखते हुए इसे आईयूसीएन द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेशीज की लिस्ट में शामिल किया गया है एवं इसके फलों से प्राप्त एक्सट्रेक्ट यानी रस में एंटी-डायबेटिक प्रभाव भी देखे गए हैं।

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