Bareilly News: प्लाईवुड फैक्ट्रियां संकट में, आधा रह गया उत्पादन...60 फीसदी कर्मचारियों की छिनीं नौकरियां

Bareilly News: प्लाईवुड फैक्ट्रियां संकट में, आधा रह गया उत्पादन...60 फीसदी कर्मचारियों की छिनीं नौकरियां

प्लाईवुड फैक्ट्री के भीतर काम करते कर्मचारी

सुरेश पांडेय, बरेली, अमृत विचार। मेक इन इंडिया और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जरिए हजारों करोड़ के औद्योगिक निवेश और हजारों बेरोजगारों को रोजगार देने के दावों के बीच विदेशी माल के आयात को बढ़ावा दिए जाने जैसे फैसलों से जिले में प्लाईवुड उद्योग तबाही के कगार पर पहुंच गया है। 

पिछले कुछ ही समय में प्लाईवुड फैक्ट्रियों में उत्पादन आधे से भी ज्यादा गिर गया है। इसका सीधा असर रोजगार पर भी पड़ा है। ज्यादातर फैक्ट्रियों ने अपने 60 फीसदी तक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इसके बाद भी प्लाईवुड फैक्ट्रियां संकट से जूझ रही हैं।

जिले में करीब 20 प्लाईवुड फैक्ट्रियां हैं जिनके भविष्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। सरकारी नीतियों के अलावा जिले में किसानों के यूक्लिप्टिस और पॉपुलर के उत्पादन से हाथ खींच लिए जाने से ये फैक्ट्रियां संकट से घिर गई हैं। प्लाईवुड का उत्पादन करने वाले उद्यमियों के सामने घरेलू समस्याएं तो हैं ही, ऊपर से नेपाल और वियतनाम समेत कई देशों से सस्ती प्लाईवुड के आयात ने उनके आगे कड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। स्थानीय उत्पादन में लागत के मोर्चे पर उन्हें लगातार मात खानी पड़ रही है।

हालत यह है कि जिले में कई उद्यमियों ने नई प्लाईवुड फैक्ट्री शुरू करने के लिए जमीनें खरीदीं थी लेकिन अब उन्होंने कदमों को पीछे खींचना शुरू कर दिया है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी लकड़ी की अनुपलब्धता और दूसरी कई समस्याओं की वजह से हरियाणा में करीब 80 फीसदी प्लाईवुड फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। देश के कई और राज्यों में भी प्लाईवुड उद्यमियों को फैक्ट्रियां चलाना भारी पड़ रहा है।

मंडी शुल्क लागू करके सरकार ने कमर तोड़ दी
बरेली प्लाईवुड एसोसिएशन के अध्यक्ष शेखर का कहना है कि तीन साल पहले तक प्लाईवुड उद्योग ठीकठाक चल रहा था लेकिन इसके बाद एक-एक कर कई समस्याओं में घिर गया। कई चुनौतियों से जूझ रहे इस उद्योग पर सरकार ने मंडी शुल्क लागू कर दिया। इस उद्योग में मंडी शुल्क का औचित्य नहीं है लेकिन सरकार आयातित माल पर भी मंडी शुल्क लेती है। 

1998 के उस शासनादेश की भी अनदेखी की जा रही है जिसमें साफ कहा गया था कि कोई भी उत्पाद जो प्रयोग हो चुका हो या उसका रूप बदल चुका है तो उस पर मंडी शुल्क नहीं लगेगा। शेखर ने बताया कि सरकार किसान के लकड़ी उत्पादन पर मंडी शुल्क लगाने के साथ उससे बनी प्लाईवुड पर भी मंडी शुल्क ले रही है। इसने प्लाईवुड उद्योग की कमर तोड़ दी है।

60 टन तक था एक प्लाईवुड फैक्ट्री का उत्पादन, अब रह गया औसतन 25 टन
प्लाईवुड एसोसिएशन के अध्यक्ष के मुताबिक जिले की हर प्लाईवुड फैक्ट्री में अब औसतन हर दिन 25 टन के आसपास ही उत्पादन हो रहा है। पहले यह उत्पादन 50 से 60 टन था। पहले जब लकड़ी की अच्छी उपलब्धता थी तो बेहतर उत्पादन के साथ एक फैक्ट्री में 150 से 200 लोगों को रोजगार मिला था जो अब घटकर 70 से 75 रह गया है। तीन साल पहले तक 24 घंटे चलने वाली फैक्ट्रियां अब 12 ही घंटे चल पा रही हैं।

विनियर से बनती है प्लाई
शेखर के मुताबिक प्लाईवुड उद्योग में विनियर का प्रयोग होता है जिसे विदेश से आयात किया जा रहा है। विनियर एक गुणवत्ता वाली लकड़ी होती है, जिसे पेड़ के तने से आरी, चाकू से बहुत पतली परतों में काटा जाता है। विनियर शीट की मोटाई 0.5 और 2 मिमी के बीच होती है। कई शीटों को मिलाने से एक ही पैटर्न के साथ बड़े क्षेत्रों को कवर किया जा सकता है।

ठगे जाने लगे किसान तो छोड़ दिया पॉपुलर-यूक्लिप्टिस के पेड़ उगाना
कुछ साल पहले तक जिले में बड़े पैमाने पर यूक्लिप्टिस और पॉपुलर के पेड़ उगाए जाते थे। प्लाईवुड फैक्ट्रियों में इस लकड़ी की मांग बढ़ने के बाद किसानों ने मेड़ों के साथ पूरे-पूरे खेतों में इन दोनों पेड़ों को उगाना शुरू कर दिया लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि बिचौलियों ने जहां-तहां आढ़तें खोलकर किसानों और फैक्ट्रियों के बीच दलाली शुरू कर दी। बिचौलियों के सक्रिय हो जाने से लकड़ी का रेट लगातार कम होने लगा तो किसानों का मोह भंग हो गया।

वर्ल्ड एग्रो फॉरेस्ट्री से नर्सरी बनाने का आग्रह
केंद्र सरकार के एक एनजीओ ने वर्ल्ड एग्रो फारेस्ट्री बनाई है जो लोगों को पर्यावरण के लिए पेड़ों के लाभों का उपयोग करना बताती है। इसकी एक नर्सरी सीतापुर में शुरू हुई है। शेखर ने बताया कि उन्होंने एनजीओ से बरेली में भी नर्सरी बनाने का आग्रह किया है। एसोसिएशन इसका आधा खर्च भी वहन करने को तैयार है। इस नर्सरी में उच्च गुणवत्ता वाले पॉपुलर और यूकेलिप्टस के पौधे मिल सकेंगे। इससे प्लाईवुड इंडस्ट्री के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा।

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