"जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे", चुनाव परिणाम से अयोध्या ने फिर चौंकाया

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Published By Jagat Mishra
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इंदुभूषण पांडेय/अयोध्या, अमृत विचार। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और "जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे" नारे के साथ भाजपा चुनाव मैदान में जरूर उतरी, लेकिन यहां अयोध्या (फैजाबाद) के लोकसभा चुनाव परिणाम ने ही पूरे देश को चौंका दिया है। अयोध्या की फैजाबाद सीट ही नहीं अगल-बगल अंबेडकरनगर, बस्ती, सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, बाराबंकी, श्रावस्ती आदि सीटों पर भाजपा की पराजय लंबे समय तक भाजपा को सालने वाली रहेगी। 
       
यह पहला मौका नहीं था जब अयोध्या और राम मंदिर को मुद्दा बनाकर वोट की सियासत साधने की कोशिश की गई। वर्ष 1986 में राम जन्मभूिम का ताला खुलने से लेकर बीते जनवरी में राम मंदिर में हुई रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बीच चार दशक की अवधि में अयोध्या व उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति ने यहां से करवटें और अंगड़ाइयां ली हैं। एक तरह से राम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में भाजपा और आरएसएस ने इसे अपनी सियासत की प्रयोगशाला बना लिया, लेकिन इसे अयोध्या की खूबी कहें या कुछ और, इस अवधि में चुनाव चाहें लोकसभा के हुए हों, विधानसभा या निकायों के, अयोध्या ने समय-समय पर चौंकाने वाले परिणाम दिए हैं। बीते विधानसभा के चुनाव और अयोध्या नगर निगम के चुनाव में भी चुनाव परिणामों से भाजपा भौचक रह गई थी। 
     
अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन एक तरह से वर्ष 1985 में परवान चढ़ना शुरू हुआ। जब जेल जैसे लोहे के सींकचों के बीच रामलला ताले में कैद थे और उनकी मुक्ति का विहिप ने आंदोलन शुरू किया। एक फरवरी 1986 को अदालत के आदेश से राम जन्मभूमि का ताला खुला तो अयोध्या को भाजपा ने एक तरह के अपनी ऊर्जा का केंद्र बना लिया। राम मंदिर आंदोलन शुरू होने के बाद कांग्रेस की जड़ लगभग यहां से उखड़ गई। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रसेन यादव ने कांग्रेस के निर्मल खत्री को पराजित कर इस सीट पर कब्जा किया, लेकिन 1995 में भाजपा के विनय कटियार यहां के सांसद हुए और लगातार दो बार जीते। चौंकाने वाला परिणाम फिर 1998 में लोकसभा चुनाव में आया जब सपा के मित्रसेन यादव ने भाजपा को मात दे दी। 1999 में विनय कटियार फिर सांसद चुने गए, लेकिन मित्रसेन यादव ने 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट से लड़कर इस सीट पर कब्जा कर लिया। 
     
योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार आई तो उन्होंने अयोध्या को नगर निगम का दर्जा दिया तो उस समय अयोध्या जिले की सभी पांच  विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा था। चौंकाने वाले परिणामों की दृष्टि से देखें तो इतना सबकुछ करने के बाद 2022 में विधानसभा के चुनाव हुए तो अयोध्या जिले की पांच में से दो विधानसभा सीटें क्रमश: गोसाईगंज और मिल्कीपुर समाजवादी पार्टी ने छीन ली। यह तब हुआ जबकि अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर की आधारशिला रखी थी। उम्मीद थी कि इसका असर विधानसभा चुनाव में दिखेगा और भाजपा को लाभ होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद मई 2023 में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा अपने इतने पार्षद भी नहीं जिता पाई कि अयोध्या निगम बोर्ड में उसका बहुमत हो जाए। नगर निगम के चुने गए नए मेयर के वार्ड में भी भाजपा को हराकर निर्दल पार्षद जीत गया। वहीं राम मंदिर जिस वार्ड में है, उस वार्ड में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ी और वहां से जमीन कारोबारी एक मुसलमान निर्दल पार्षद बन गया। 

इसी तरह अयोध्या में आरएसएस के बने नए मुख्यालय साकेतपुरी वार्ड में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी और यहां भी एक मुस्लिम महिला निर्दल पार्षद चुन ली गईं। यह अलग बात है कि अब कई निर्दल पार्षदों को दल में शामिल कराकर भाजपा का नगर निगम बोर्ड से बहुमत हो गया। अब जब 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो इंडिया गठबंधन प्रत्याशी अवधेश प्रसाद लगभग 47 हजार से भी अधिक वोटों से जीत गए। भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह हैट्रिक बनाने से चूक गए। वहीं राम मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन नृपेंद्र मिश्र के पुत्र साकेत मिश्रा भी तकरीबन 70 हजार वोटों से हार गए।

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