नक्सलवाद की समस्या
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है। राज्य में नक्सलवादियों की सक्रियता सरकार के नक्सल-विरोधी अभियान से संबंधित नीतियों पर प्रश्नचिह्न है। सुकमा जिले में रविवार को नक्सलियों ने एक ट्रक को आईईडी से उड़ा दिया, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की विशेष इकाई के दो जवान शहीद हो गए। नक्सलियों ने ट्रक को निशाना बनाकर आईईडी धमाका किया।
साफ है,नक्सली घात लगाकर आधुनिकतम घातक हथियारों से हमला बोलने में सक्षम व समर्थ हैं। साथ ही नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने अब नकली नोट छापना शुरू कर दिया है। संगठन के बड़े कैडरों ने अपने लड़ाकों को नकली नोट छापने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया है।
पुलिस ने रविवार को तलाशी अभियान के दौरान नक्सलियों द्वारा नकली नोट बनाने की मशीन, नकली नोटों के सैंपल, विस्फोटक और हथियार बरामद किए। तीन दशकों से अधिक समय से इस समस्या से जूझ रहे राज्य में पहली बार नक्सलियों के नकली नोट बरामद किए गए हैं।
सुरक्षा बलों के दबाव में और धन की कमी के कारण, नक्सली क्षेत्र के आंतरिक इलाकों के साप्ताहिक बाजारों में विभिन्न वस्तुओं की खरीद के लिए नकली नोटों का उपयोग करने और स्थानीय आदिवासी विक्रेताओं को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं।
आश्चर्य है कि बस्तर में नक्सलियों द्वारा जाली नोट छापे जाने को लेकर एनआईए को भनक तक नहीं है। नक्सली इस कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की भी कोशिश कर रहे हैं। भारतीय राष्ट्र-राज्य की संवैधानिक व्यवस्था को यह गंभीर चुनौती है।
जाहिर है, इनसे न केवल सख्ती से निपटने की जरूरत है, बल्कि खुफिया एजेंसियों को भी सतर्क करने की जरूरत है। क्योंकि राज्य सरकार की जासूसी संस्थाएं असफल रही हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या वर्ष 2000 के आसपास सामने आई। यहां स्थिति गंभीर व चुनौतीपूर्ण थी।
हालांकि खबरें तो यहां तक हैं कि पाकिस्तान और चीन माओवाद को बढ़ावा देने की दृष्टि से हथियार पंहुचाने की पूरी एक श्रृंखला बनाए हुए हैं। नक्सली समस्या को लेकर ढेर सारी चुनौतियों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पहले के मुकाबले कमी आई है। शुक्रवार को सुकमा में चार नक्सलियों ने नक्सल ऑपरेशन कार्यालय में आत्मसमर्पण किया।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को शासन की छत्तीसगढ़ नक्सलवाद उन्मूलन नीति के तहत सहायता राशि और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। इसके बावजूद अपने वर्तमान रूप में नक्सल आंदोलन ने अपनी प्रकृति और उद्देश्य दोनों में बदलाव किया है। इसलिए इन्हें नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी अब सेना व सुरक्षा बलों को संयुक्त रूप से सौंप देनी चाहिए।
