बरेली: बंटवारे के वक्त नफरत के खात्मे को आगे आए थे मुफ्ती-ए-आजम हिंद

Amrit Vichar Network
Published By Vivek Sagar
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बरेली, अमृत विचार। आला हजरत के छोटे बेटे मुफ्ती आजम हिंद का 44 वां एक दिवसीय उर्स-ए-नूरी शनिवार को बेहद अदब के साथ दरगाह परिसर में मनाया गया, जिसमें उलमा ने मुफ्ती-ए-आजम का किरदार बयां किया। बताया कि देश में जिस वक्त बंटवारे की उथल-पुथल मची थी, तब मुफ्ती-ए-आजम ने इस खाई को पाटने का काम किया था। वह नफरत के खात्मे को आगे आए थे। देर रात कुल की रस्म के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इससे पहले दिन भर दरगाह पर हाजिरी देने के लिए जायरीन आते रहे।

दरगाह आला हजरत के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि सभी कार्यक्रम दरगाह प्रमुख सुब्हानी मियां की सरपरस्ती और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां की सदारत में हुए व देखरेख सैयद आसिफ मियां ने की। मगरिब की नमाज के बाद हाजी गुलाम सुब्हानी ने मिलाद का नजराना पेश किया। निजामत कारी यूसुफ रजा ने की।

इसके बाद मुख्य कार्यक्रम का आगाज देर रात मौलाना जहीम मंजरी ने कुरान की तिलावत से किया। उलमा ने तकरीर और शायरों ने कलाम पेश किए। मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि मुफ्ती-ए-आजम हिंद ने आला हजरत के मिशन को आगे बढ़ाया। जिस वक्त देश बंटवारे की आग में जल रहा था और उथल पुथल मची थी। तब उन्होंने समाज को जोड़ने का काम किया। उनके पास से हिंदू-मुसलमान कोई खाली नहीं लौटा।

मौलाना मुख्तार बहेड़वी, मुफ्ती आकिल रजवी, मुफ्ती अय्यूब नूरी, मुफ्ती सैयद कफील हाशमी, कारी अब्दुर्रहमान कादरी, मौलाना डॉ. एजाज अंजुम आदि ने तकरीर की। सैफी मियां, फारूक मदनापुरी, महशर बरेलवी, आसिम नूरी आदि ने नात और मनकबत पेश की। देर रात 1 :40 बजे कुल शरीफ की रस्म अदा की गई।

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