प्रयागराज : पारिवारिक सुरक्षा के लिए विवाह विच्छेद की अनुमति उचित

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि तलाक एक सिविल कार्यवाही है। यह संस्था संबंध-विच्छेद होने के बावजूद पति या पत्नी को झूठे आपराधिक मामले दर्ज करके अपने विपक्षी से बदला लेने के लिए कभी भी प्रेरित नहीं करती है। पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठा आपराधिक मुकदमा चलाने से पति के मन में अपने परिवार और खुद की सुरक्षा के प्रति आशंका उत्पन्न हो सकती है।

झूठे  मुकदमों के बाद विपक्षी पति या पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह इससे उबरकर अपने वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू कर पाएगा। ऐसे मुकदमों से विपक्षी की प्रतिष्ठा और सामाजिक मर्यादा को नुकसान पहुंचता है, इसलिए ऐसे मामलों में भविष्य के जोखिम को देखते हुए विवाह-विच्छेद की अनुमति देना उचित होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, कानपुर नगर द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती देने वाली तृप्ति सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया और तलाक के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। मामले के अनुसार पक्षकारों का विवाह वर्ष 2002 में हुआ और उन्हें एक बेटा भी हुआ।

वर्ष 2006 में अपीलकर्ता ने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया, जिसके बाद विपक्षी/पति ने तलाक के कार्रवाई शुरू की। मालूम हो कि अपीलकर्ता ने विवाह के 6 वर्ष बाद और पति द्वारा तलाक की याचिका दाखिल करने के बाद दहेज की मांग के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्ष शिक्षित हैं। इसके बावजूद अपीलकर्ता ने केवल प्रतिशोध और विपक्षी को परेशान करने के उद्देश्य से दहेज की मांग के झूठे आपराधिक मामले दर्ज करवाए, जिसके कारण पति के पारिवारिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें जमानत दे दी गई। हालांकि अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता द्वारा अपने ससुराल वालों के द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के कारण आपराधिक मामले दर्ज करवाए गए, लेकिन कोर्ट ने पाया कि ऐसे आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं।

इसके अलावा अपीलकर्ता का यह भी तर्क है कि वह अपने पति के साथ वैवाहिक संबंध को पुनर्जीवित करने के लिए आपराधिक कार्यवाही में अपने बयान से मुकर गई, साथ ही अपीलकर्ता ने पक्षकारों के बीच समझौता होने का भी दावा किया, लेकिन कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि विपक्षी के माता-पिता भले ही अपीलकर्ता के ससुराल वाले हों, लेकिन माता-पिता की अकारण गिरफ्तारी और उनके खिलाफ झूठे आपराधिक आरोपों के बाद विपक्षी को ऐसे संबंध में बने रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

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