मैं बलरामपुर अस्पताल हूं...सेवाभाव के 156 वसंत देख चुका हूं...

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Published By Muskan Dixit
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1869 में खुली थी रेजिडेंसी हिल डिस्पेंसरी, शुरुआत में सिर्फ सैनिकों का होता था इलाज 1902 में राजा बलरामपुर ने अस्पताल के लिए दी जमीन और आर्थिक मदद

पंकज द्विवेदी, लखनऊ, अमृत विचार: मैं आपका साथी बलरामपुर अस्पताल हूं। मेरा जन्म 1869 में हुआ था। अंग्रेजों की हुकूमत थी। उस दौरान में सिर्फ सैनिकों की ही सेवा कर पाता था। 1902 में राजा बलरामपुर ने हमें नया जीवन दिया। आजादी के बाद साल 1948 में हमें सरकार के अधीन कर दिया गया। तब से मैं स्वतंत्र होकर आपकी सेवा में 24 घंटे तत्पर हूं। 3 फरवरी को हमारा 156 वां जन्मदिन है। इस बार दो साल बाद मेरा स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। पर चिंता की बात नहीं मैं हर्षित हूं। आज 156 साल का युवा हूं... लेकिन जोश किसी किशोर से कम नहीं है। स्थापना दिवस के दो दिन पहले से ही विभिन्न आयोजन शुरू हो जाएंगे।
समारोह को भव्यरूप देने के लिए अस्पताल प्रशासन तेजी से तैयारियां पूरी करने में जुटा हुआ है। इमारतों की रंगाई-पुताई की जा रही है। इस मौके पर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, स्वास्थ्य राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह, प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा सहित कई हस्तियां इसमें शामिल हो सकती हैं।

''रेजिडेंसी हिल डिस्पेंसरी'' से खुला रास्ता ऐसे पड़ी नींव

लोग इसे बलरामपुर के राजा भगवती सिंह की देन मानते हैं, लेकिन इसकी नींव 155 साल पहले अंग्रेजों ने रखी थी। दरअसल, जनवरी 1860 में 27 साल की उम्र में ब्रिटिश सर्जन फ्रेड्रिक ऑगस्टस की मौत हो गई। गोलागंज में उनका मकबरा बना। फिर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए अंग्रेजों ने साल 1869 में यहीं पर ''रेजिडेंसी हिल डिस्पेंसरी'' खोली। शुरुआत में यहां सैनिकों का इलाज होता था। बाद में आम लोगों का भी इलाज होने लगा। इसी बीच साल 1902 में राजा भगवती सिंह ने जमीन मुहैया करवाई, जिसके बाद यह डिस्पेंसरी धीरे-धीरे अस्पताल में तब्दील होती चली गई।

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12 बेड की थी डिस्पेंसरी

बलरामपुर अस्पताल के मौजूदा निदेशक डॉ. सुशील प्रकाश ने बताया कि शुरुआती दौर में डिस्पेंसरी में सैनिकों के इलाज के लिए 12 बेड थे। धीरे-धीरे ब्रिटिश डॉक्टर यहां आम जनता का भी इलाज करने लगे। राजा बलरामपुर ने जब इसका विस्तार किया तो यहां उन्होंने 36 बेड लगवाए और मरीजों के इलाज के लिए उपकरण भी खरीदवाए। फरवरी 1948 में बलरामपुर अस्पताल सरकार के अधीन कर दिया गया। उस वक्त 20 बेड और बढ़ाए गए और एक विशेषज्ञ डॉक्टर के साथ तीन चिकित्सक तैनात किए गए। साथ ही तीन कम्पाउंडर, 20 नर्स और 50 कर्मचारी रखे गए। उस वक्त यहां रोजाना करीब 200 मरीज देखे जाते थे।वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश सरकार का सबसे बड़ा एवं प्रतिष्ठित चिकित्सालय होने के साथ-साथ प्रदेश का रेफरल चिकित्सालय भी है।

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सुभाष चंद्र बोस भी करवा चुके इलाज

देश के स्वाधीनता आंदोलन में भी बलरामपुर अस्पताल की अहम भूमिका बताई जाती है। उस दौर में यहां कई क्रांतिकारियों का इलाज हुआ था। इतिहास के मुताबिक नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी एक बार बलरामपुर अस्पताल में इलाज करवाने आए थे। उनके अलावा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह भी जब बीमार हुए तो उनका इलाज यहीं हुआ। इसी तरह मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह यादव, नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह, चंद्र भानु गुप्ता, श्रीपति शुक्ला और राम प्रकाश गुप्ता का भी इलाज यहीं पर हुआ।

निदेशक डॉ. सुशील प्रकाश

यहां से निकले डॉक्टरों का देश-विदेश में डंका

पीजीआई के वरिष्ठ न्यूरॉलाजिस्ट प्रो. सुनील प्रधान ने साल 1979 में बलरामपुर अस्पताल में इंटर्नशिप किया था। ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. एनसी मिश्रा भी बलरामपुर अस्पताल से निकलकर केजीएमयू में प्रोफेसर बने। वहीं, बलरामपुर अस्पताल के अधीक्षक रहे डॉ. एससी राय ने चिकित्सा और राजनीति के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल किया।

अब अस्पताल में हैं ये सुविधाएं

- 64 डॉक्टर हैं अस्पताल में
-776 बेड
-75 बेड की इमरजेंसी
- मुफ्त डायलिसिस की सुविधा
-28 बेड की वेंटिलेटर यूनिट
-प्राइवेट वॉर्ड की सुविधा
-सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एक्सरे की सुविधा
-24 घंटे इमजरेंसी
-24 घंटे पैथॉलजी की सुविधा
24 घंटे शव वाहन

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