International Women's Day : डॉ. तबस्सुम ने तबियत से उछाला तरक्की का पत्थर यारों...

Amrit Vichar Network
Published By Bhawna
On

राजकीय रजा डिग्री कालेज में स्टॉफ के साथ डॉ. बेबी तबस्सुम।

सुहेल जैदी, अमृत विचार। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। यह पंक्तियां राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में जूलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बेबी तबस्सुम पर सटीक बैठती हैं। समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में खास पहचान बनाई है। डॉ. बेबी तबस्सुम का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ। बरेली कॉलेज से बीएससी करने के बाद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली में डब्ल्यूएचओ के प्रोजेक्ट में कार्य किया। मॉरीशस में उनके शोध पत्र को बेस्ट पेपर अवॉर्ड मिला। उन्होंने कई देशों में शोध कार्य प्रस्तुत किया।

डॉ. बेबी तबस्सुम के परिवार में पांच भाई-बहन थे और पारिवारिक माहौल पारंपरिक था। मोहल्ले में शिक्षा का माहौल न के बराबर था। खासकर लड़कियों के लिए जहां पढ़ाई का अर्थ केवल कुरआन पढ़ना या उर्दू की किताबों तक सीमित था। प्राथमिक शिक्षा के बाद, डॉ. तबस्सुम को पांचवीं कक्षा के बाद एक अर्द्ध-सरकारी लड़कियों के स्कूल में भेज दिया गया, क्योंकि उनके परिवार और समाज में मान्यता थी कि लड़कियों को केवल लड़कियों के स्कूल में ही पढ़ना चाहिए। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने विज्ञान विषय से बारहवीं कक्षा छात्रवृत्ति के साथ पूरी की और अपने खानदान की पहली लड़की बनीं, जिसने बारहवीं पास की।

बताती हैं कि कॉलेज जाने का निर्णय उनके लिए आसान नहीं था। पूरे समाज का दबाव था कि इतना पढ़ने के बाद उनसे शादी कौन करेगा। तरह-तरह के आरोप लगाए गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वर्ष 1994 में उन्होंने बरेली कॉलेज से बीएससी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और अपने क्षेत्र की पहली लड़की बनी, जिसने विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने कॉलेज में पार्ट-टाइम जॉब की और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के प्रोजेक्ट में रिसर्च एसोसिएट के रूप में कार्य किया। उन्होंने खुद से शपथ ली कि स्कूटी से लेकर कार तक तभी चलाएंगी, जब खुद खरीद सकेंगी और उन्होंने ऐसा ही किया। इससे पहले पढ़ाई का सफर पैदल ही तय किया।

उन्हें पहली बार सरकारी कॉलेज में रहते हुए मॉरीशस में अपने शोध पत्र को प्रस्तुत करने का अवसर मिला, जिसमें उन्होंने पेयजल में भारी धातुओं की उपस्थिति और उसके दुष्प्रभावों पर शोध किया था। इस शोध पत्र को बेस्ट पेपर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद, दुबई, बहरीन, जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, ऑस्ट्रिया सहित कई देशों में उन्होंने अपने शोध कार्य को प्रस्तुत किया। उनके शोध कार्य को यूजीसी, सीएसटी और आरडीसी यूपी जैसे संगठनों से वित्तीय सहायता मिली और विदेश यात्रा का खर्च भी यूजीसी द्वारा उठाया गया।

70 से अधिक शोधपत्र और लिख चुकीं 24 पुस्तकें  
डॉ. तबस्सुम के निर्देशन में तीन शोधार्थी पीएचडी पूरी कर चुके हैं और विभिन्न नौकरियों में कार्यरत हैं। जबकि पांच छात्र शोध कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( 2020) में विज्ञान संकाय की विशेषज्ञ के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें नियुक्त किया गया है। उनका मानना है कि एक शिक्षिका का कर्तव्य केवल ज्ञान देना ही नहीं बल्कि, छात्र-छात्राओं के भविष्य को आकार देना भी है। उन्होंने अब तक 70 से अधिक शोध पत्र और लगभग 24 पुस्तकें लिखी हैं।

समाज की रूढ़ियों से लड़ते हुए बेटियां अपने सपनों को पूरा करें, इसके लिए जुनून और जज्बा होना जरूरी है। जो अभिभावक बेटियों की शिक्षा को कमतर समझते हैं। अगर बेटियों का हौसला मजबूत हो, तो कोई भी समाज या परिस्थिति  उनके सपनों की उड़ान को रोक नहीं सकती। परिवार और कॅरियर के बीच संतुलन बनाते हुए भी महिलाएं उच्च शिखर तक पहुंच सकती हैं। - डॉ. बेबी तबस्सुम, असिस्टेंट प्रोफसर, राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामपुर 

ये भी पढे़ं : Moradabad : फुलवन मा महक तुम्हीं से है...स्वयं सहायता समूह बनाकर दो महिलाओं ने फूलों की खेती से बदली दर्जनों महिलाओं की किस्मत

संबंधित समाचार

टॉप न्यूज