Prayagraj : उचित विधिक प्रक्रिया अपनाए बिना निजी संपत्ति का सरकारी उपयोग करना असंवैधानिक
Amrit Vichar, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उचित मुआवजा दिए बिना भूमि अधिग्रहण के मामले में अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार के बजाय संवैधानिक अधिकार है। यह मानवाधिकारों के बराबर है। ऐसे में किसी व्यक्ति को उचित विधिक प्रक्रिया का पालन किए बिना उसकी संपत्ति पर अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
राज्य प्राधिकारियों को इस संदर्भ में सतर्क रहने की आवश्यकता है कि नागरिकों की भूमि का उपयोग विधि के समुचित प्राधिकार के बिना या अधिग्रहण की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ना किया जाए, अन्यथा जो प्राधिकारी विधि की समुचित प्रक्रिया के बिना भूमि अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार पाए जाएंगे, उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा, जिसे उनके व्यक्तिगत खाते से वसूला जाएगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कन्यावती के याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया और अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापना अधिनियम, 2013 में निर्धारित उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के प्रावधानों के अनुसार आवेदक को मुआवजे का हकदार मानते हुए जिला स्तरीय समिति को सड़क चौड़ीकरण हेतु ली गई भूमि का मुआवजा निर्धारित कर याची को ब्याज सहित चार सप्ताह के भीतर मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।
दरअसल याची ने बरेली में एक जमीन खरीदी। खरीद के समय राजस्व अभिलेखों में इसे चक रोड दर्शाया गया था, जो याची के भूखंड के दक्षिण में स्थित थी। इसके बाद सड़क को चौड़ा किया गया, जिसमें याची की जमीन का एक हिस्सा भी अधिग्रहित कर लिया गया। मुआवजे के लिए प्राधिकरण को बार-बार अभ्यावेदन देने के बावजूद याची के पक्ष में कोई कार्यवाही नहीं हुई, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। मामले को निस्तारित करते हुए कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, बरेली को याची के मुआवजे के अधिकार के निर्धारण हेतु 12 मई 2016 के शासनादेश के अनुसार मामले को जिला स्तरीय समिति को भेजने का आदेश दिया, लेकिन जिला स्तरीय समिति ने याची के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि शुरू में चक रोड 3 मीटर चौड़ी थी और दोनों तरफ ढाई मीटर अतिरिक्त जगह उपलब्ध थी, इसलिए सड़क को 1.25 मीटर चौड़ा करने से याची के किसी व्यक्तिगत अधिकार का हनन नहीं हुआ।
इसके बाद याची ने पुनः हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने मामले पर विचार करते हुए पाया कि प्रारंभिक चक रोड को लगभग 20 वर्ष पूर्व चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग द्वारा बिना किसी अधिग्रहण के विकसित किया गया था और बाद में लोक निर्माण विभाग द्वारा पुनः किसी उचित अधिग्रहण प्रक्रिया को अपनाये बिना याची की भूमि का कुछ हिस्सा लेकर इसे चौड़ा कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि संविधान का अनुच्छेद 300ए प्रत्येक नागरिक को संपत्ति का अधिकार देता है और विधिक प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकों के संपत्ति-अधिकार में अतिक्रमण को रोकता है।
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