Prayagraj : कानूनी दस्तावेजों पर हुए हस्ताक्षरों के मिलान हेतु कोर्ट के पास आवश्यक विशेषज्ञता नहीं
Amrit Vichar, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दस्तावेजों पर अंकित हस्ताक्षरों के सत्यापन से संबंधित मामले में कहा कि न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत विभिन्न दस्तावेजों पर हस्ताक्षरों का मिलान करने के लिए कोर्ट के पास आवश्यक विशेषज्ञ और कौशल नहीं है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यद्यपि न्यायाधीशों द्वारा हस्तलेखों की जांच करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, फिर भी ऐसे मामले में किसी विशेषज्ञ की राय लेना आवश्यक है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकलपीठ ने सुनीता की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने माना कि वर्तमान मामले में वर्ष 2019 में जारी की गई विवादित रसीदें महत्वपूर्ण हैं, जिन पर हस्ताक्षरों की प्रमाणिकता के बारे में निर्धारण की आवश्यकता है और ऐसे नाजुक मामले में दोनों दस्तावेजों की तुलना नंगी आंखों से करने के बजाय हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय लेना अधिक उपयुक्त है। अतः कोर्ट ने सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाणित या अधिकृत हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय लेकर तीन माह की अवधि के भीतर साक्ष्य दर्ज करने का निर्देश दिया। मामले के अनुसार याची पूर्व मकान मालकिन हरभजन कौर का किरदार था, जिसके बेटे सरदार देवेंद्र सिंह ने अपनी मां के नाम से किराए की रसीदें जारी की थीं। याची को लघु वाद न्यायालय के समक्ष यह साबित करना था कि किराए का बकाया चुका दिया गया है।
इसके लिए उसने 16 हजार रुपए की किराए की रसीद को बतौर साक्ष्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जिस पर सरदार देवेंद्र सिंह ने अपनी मां के नाम से गुरुमुखी लिपि में हस्ताक्षर किए थे। पुनरीक्षणकर्ता के अधिवक्ता का तर्क था कि गुरुमुखी में किए गए हस्ताक्षर का मिलान करने के लिए लघु वाद न्यायालय ने विशेषज्ञ की राय लेने के बजाय हस्तलेखन विशेषज्ञ के लिए आवेदन को खारिज कर दिया। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि हस्तलेखन विशेषज्ञ के लिए आवेदन करने में देरी के आधार पर आवेदन खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि हरभजन कौर की मृत्यु 2015 में हो गई थी, तो वर्ष 2019 में उनके नाम पर रसीदें जारी करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, साथ ही पुनरीक्षणकर्ता द्वारा हरभजन कौर के किसी भी उत्तराधिकारी द्वारा जारी की गई किराए के भुगतान की रसीदें प्रस्तुत नहीं की गई हैं। हरभजन कौर के हस्ताक्षर से संबंधित मुद्दे का निर्धारण आवश्यक है। मुख्य मुद्दा यह है कि क्या अंतिम रसीद पर हरभजन कौर के हस्ताक्षर थे और अगर हस्तलेखन विशेषज्ञ यह राय देता है कि रसीदों के सभी हस्ताक्षर एक ही तरह की लिखावट के हैं तो याची के पास अपने बचाव का एक वैध तर्क होगा, इसलिए मामले में हस्त लेखन विशेषज्ञ की राय आवश्यक है।
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