Kanpur: डेढ़ हजार से ज्यादा मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत, शहर के सरकारी अस्पतालों तक में सुविधा नहीं, मरीज परेशान
कानपुर, अमृत विचार। स्वस्थ जीवन के लिए किडनी का स्वस्थ होना जरूरी है। लेकिन अनेक कारणों से लोग क्रॉनिक किडनी डिजीज की चपेट में आ जाते हैं, इसके बाद उन्हें डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। हैलट और उर्सला अस्पताल में प्रतिमाह औसतन 1000 किडनी रोगी डायलिसिस के लिए पहुंचते हैं। निजी अस्पतालों में डायलिसिस कराने वालों का आंकड़ा इससे कुछ ज्यादा ही है। डॉक्टरों का कहना है कि डायलिसिस कराने वाले 80 फीसदी से अधिक मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत है।
जीएसवीएसएस पीजीआई में प्रतिमाह करीब 200 किडनी के मरीज डायलिसिस कराने पहुंचते हैं, इसके मुकाबले उर्सला अस्पताल में प्रतिमाह औसतन 800 से ज्यादा लोग डायलिसिस करा रहे हैं। चिकित्सक डायलिसिस कराने वाले 80 फीसदी से ज्यादा रोगियों को किडनी प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं। लेकिन शहर के सरकारी अस्पतालों, यहां तक कि पीजीआई में भी किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा नहीं है। मरीजों को लखनऊ भेजा जाता है।
जीएसवीएसएस पीजीआई के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.सार्वभौम त्रिपाठी ने बताया कि क्रोनिक किडनी डिजीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बीमारी के निदान के दो ही तरीके हैं, पहला डायलिसिस, दूसरा किडनी प्रत्यारोपण। शर्त यह है कि मरीज इस प्रक्रिया के लिए मेडिकली फिट हो और उपयुक्त किडनी उपलब्ध हो।
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.देशराज गुर्जर ने बताया कि प्रत्यारोपण से किडनी का फंक्शन पूरी तरह रीस्टोर होता है, मरीज के जीवन की गुणवत्ता में व्यापक सुधार आता है। प्रत्यारोपण किडनी के नेचुरल, फिजिओलॉजिकल फंक्शन को सपोर्ट करके जोखिम कम करता है। इससे मरीज को बेहतर और ज्यादा आसान जीवन जीने में मदद मिलती है।
