Kanpur: खबर की चिंता छोड़, जान बचाने में शहीद हुए थे गणेश शंकर विद्यार्थी जी, बलिदान स्थल सूना, स्मारक भी नहीं बन सका
शैलेश अवस्थी, कानपुर। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कौमी एकता के लिए कुर्बान होने वाले पत्रकार शिरोमणि गणेश शंकर विद्यार्थी जी का कल बलिदान दिवस है। पिछले 94 वर्ष में वादे तो खूब हुए, लेकिन आज तक न तो बलिदान स्थल और न ही उनके कर्मस्थल पर स्मारक बन सका।
बात 23 मार्च 1931 की है। क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी के बाद अंग्रेज हुकूमत की साजिश से कानपुर में दंगा भड़का। प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी व्यथित हो गए। पुस्तकें और दस्तावेज बताते हैं कि विद्यार्थी जी लोगों को बचाने निकल पड़े। 25 मार्च 1931 की सुबह खूनी खेल और तेज हुआ तो विद्यार्थी जी ने बंगाली मोहाल, इटावा बाजार और घुमनी मोहाल जैसे हिंदू बहुल इलाकों से मुस्लिम परिवारों को बचा कर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया।
इसी बीच खबर मिली कि चौबेगोला और मूलगंज में कुछ हिंदू परिवार फंसे हैं। वे वहां पहुंचे तो उन्मादी भीड़ ने उन्हें घेर लिया। एक चिल्लाया.. अरे इन्हें मत मारो, इन्होंने तो अपने कई भाइयों को बचाया है। भीड़ कुछ ठिठकी, लेकिन अगले ही पल उन पर छुरे, भाले और लाठियों की बौछार होने लगी। उनके साथियों ने भागने को कहा, लेकिन विद्यार्थी जी बोले, मेरे मरने से इनके हृदय शांत होते हैं तो तो ठीक है।
इसके बाद वह शहीद हो गए, उनका शव दो दिन उर्सला अस्पताल में मिला। जिस चौबेगोला में विधार्थी जी शहीद हुए, वहां उनका स्मारक आज तक नहीं बन सका। वहां एक मंदिर है, जिसके ऊपर एक शिलापट पर लिखा है कि यह है बलिदान स्थल। आसपास न तो कोई बोर्ड, न संकेतक और न ही ही कोई प्रतिमा है। फीलखाना में प्रताप प्रेस की बिल्डिंग भी स्मारक में तब्दील न हो सकी।
वादे तो खूब हुए, लेकिन काम नहीं हुआ...
विद्यार्थी जी के पौत्र 88 वर्षीय अशोक विद्यार्थी और प्रपौत्र आशीष जी दुखी मन से कहते हैं कि सरकारों ने वादे तो किए पर स्मारक आज तक न बन सका। परिवार की आपसी खींचतान में गणेश जी की निशानियां और अमूल्य साहित्य गुम हो गया। परिवार के लिए एक बंगला 1948 में तब की सरकार ने आवंटित किया था, जो वर्षों से मुकदमें में फंसा है। कोई सरकारी मदद नहीं मिली।
निजी संस्थाओं ने कोशिश की
गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक शिक्षा समिति ने पाण्डुनगर और फूलबाग में उनकी प्रतिमा स्थापित करवाई, दो ग्रन्थ निकाले। उनके नाम पर अखबार प्रकाशित किया। दिल्ली में पत्रकार विद्यापीठ की स्थापना की। सरकार ने मेडिकल कालेज का नामकरण गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम पर किया।
मात्र 40 साल की उम्र में बड़े काम कर गए
26 अक्टूबर 1890 में जन्म, प्रताप अखबार का प्रकाशन, हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष, संयुक्त प्रान्त कांग्रेस के अध्यक्ष, विधान परिषद के सदस्य, मजदूर आंदोलन के प्रणेता, नर्वल आश्रम की स्थापना, स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल गए। 25 मार्च 1931 को शहीद हो गए। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को प्रताप प्रेस में शरण दी। महात्मा गांधी भी उनके प्रताप अखबार आए थे।
पौत्र और प्रपौत्र का सम्मान करेगा प्रेस क्लब
शहीद शिरोमणि पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पौत्र अशोक विद्यार्थी और प्रपौत्र आशीष जी का कानपुर प्रेस क्लब 24 मार्च को उनके आवास खालासी लाइन (आभा नर्सिंग होम के सामने) जाकर सम्मान करेगा। गणेश शंकर विद्यार्थी जी का 25 मार्च को बलिदान दिवस है।
