Prayagraj News :जीएसटी एक्ट के तहत बिना नोटिस मृतक के विरुद्ध जारी  वसूली आदेश को किया रद्द

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Published By Vinay Shukla
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Allahabad High Court Decision : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 93 के तहत प्राधिकारियों द्वारा किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ कर-निर्धारण करने और उसके कानूनी प्रतिनिधियों से उसे वसूलने के मामले में कहा कि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 93 में फर्म के मालिक की मृत्यु की स्थिति में कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा कर के भुगतान की देयता का प्रावधान है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 93(1)(ए) में प्रावधान है कि जब मालिक की मृत्यु के बाद व्यवसाय जारी रहता है, तो कानूनी प्रतिनिधि अधिनियम के तहत देय कर, ब्याज या जुर्माना का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे। कोर्ट ने अधिनियम की धारा 93 पर विचार करते हुए कहा कि यह केवल उस स्थिति में कर, ब्याज या जुर्माना अदा करने की देयता से संबंधित है, जहां कानूनी प्रतिनिधि द्वारा मृत्यु के बाद व्यवसाय जारी रखा जाता है। हालांकि प्रावधान इस तथ्य से संबंधित नहीं है कि क्या मृत व्यक्ति के खिलाफ कर निर्धारण किया जा सकता है और उक्त प्रावधान मृत व्यक्ति के खिलाफ निर्धारण करने और कानूनी प्रतिनिधि से इसकी वसूली को अधिकृत नहीं करता है।

चूंकि धारा 93 में फर्म के मालिक की मृत्यु के बाद व्यवसाय जारी रखने की स्थिति में कानूनी प्रतिनिधियों के खिलाफ कार्यवाही का प्रावधान है, इसलिए न्यायालय ने कहा कि कानूनी प्रतिनिधि को कारण बताओ नोटिस जारी करना अनिवार्य है और कानूनी प्रतिनिधि से जवाब मांगने के बाद ही निर्धारण किया जा सकता है। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने अमित कुमार सेठिया (मृतक) की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। वर्तमान मामले के अनुसार याची की मृत्यु 20 अप्रैल 2021 को हो गई और उसकी फर्म का पंजीकरण 13 मई 2021 को रद्द कर दिया गया।

इसके बाद 13 नवंबर 2023 को याची के नाम पर जीएसटी अधिनियम की धारा 73 के तहत एक नोटिस जारी की गई। फर्म का पंजीकरण रद्द होने के बावजूद नोटिस और अनुस्मारक पोर्टल पर अपलोड किए गए थे। याची के उत्तराधिकारियों द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया और धारा 73 के तहत 17 नवंबर 2023 को मांग आदेश पारित किया गया। उपरोक्त मांग आदेश को चुनौती देते हुए याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विभाग को याची की मृत्यु के बारे में पता था और उसके नाम पर कोई नोटिस जारी नहीं किया जा सकता था। कानून की दृष्टि से ऐसी कार्यवाही शुरू से ही अमान्य थी। अंत में कोर्ट ने मृत व्यक्ति के कानूनी प्रतिनिधियों के खिलाफ बिना नोटिस जारी किए   पारित आक्षेपित वसूली आदेश को रद्द कर दिया।

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