Kanpur: एक इंजेक्शन से दूर होगी खून की कमी, GSVM के स्त्री एवं प्रसूति विभाग में खुला डे-केयर एनीमिया वार्ड, पीड़ित महिलाओं की होगी पूरी देखभाल

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में अब एक इंजेक्शन से एनीमिया ग्रस्त महिलाओं में खून की कमी दूर की जाएगी। इसके लिए डे केयर एनीमिया वार्ड की स्थापना की गई है। खासबात यह है कि युवतियों और महिलाओं को वार्ड में अधिक समय तक रुकना भी नहीं पड़ेगा। करीब 30 मिनट बाद ही मरीज की अस्पताल से छुट्टी कर दी जाएगी। 

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन 50 से 60 फीसदी महिलाएं एनीमिया ग्रस्त पहुंचती हैं, जिनका हीमोग्लोबिन छह से नौ ग्राम होता है। ब्लड बैंकों में खून की कमी की वजह से उनको परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन अब इससे छुटकारा मिलेगा। विभाग में आने वाली एनीमिया से पीड़ित गर्भवती व महिलाओं को चिह्नित किया जाएगा। उनको सुरक्षित, प्रभावशाली और त्वरित उपचार दिया जाएगा। इसके लिए विभाग में गुरुवार को डे-केयर एनीमिया वार्ड की स्थापना की गई है। 

विभागाध्यक्ष डॉ.रेनू गुप्ता ने बताया कि वार्ड में महिलाओं को एफसीएम इंजेक्शन लगाया जाएगा। इसके लिए महिलाओं को रुपये देने की जरूरत नहीं होगी। इस इंजेक्शन का खर्च अमेरिका की जीव दया फाउंडेशन वहन करेगी। इंजेक्शन लगने के करीब 30 मिनट के बाद छुट्टी भी कर दी जाएगी। महिलाओं को पोषण संबंधी जानकारी भी उपलब्ध कराई जाएगी। डॉ. शैली अग्रवाल ने बताया कि डे-केयर एनीमिया वार्ड, एनीमिया मुक्त भारत की दिशा में एक सशक्त कदम साबित होगा। इससे न सिर्फ गर्भवती महिलाओं का जीवन सुरक्षित होगा, बल्कि स्वस्थ समाज और भावी पीढ़ी की नींव भी मजबूत होगी। इस दौरान पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. नीना गुप्ता, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की मीडिया प्रभारी डॉ. सीमा द्विवेदी, डॉ. बंदना शर्मा, डॉ. पाविका लाल, डॉ. गरिमा गुप्ता, डॉ. प्रज्ञा, डॉ. दिव्या द्विवेदी, डॉ.प्रतिमा व डॉ. दीपक आनंद आदि रहे।

हर दूसरी गर्भवती एनीमिया से ग्रस्त 

पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.नीना गुप्ता ने बताया कि भारत में हर दूसरी गर्भवती महिला एनीमिया से ग्रसित है, जो गर्भावस्था में अनेक जटिलताओं का कारण बनता है। इसमें अत्यधिक थकान, चक्कर आना, प्रसव पूर्व रक्तस्राव, समयपूर्व प्रसव, कम वजन के शिशु का जन्म और संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। यह भी देखा गया है कि एनीमिया मातृ मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में एनीमिया से पीड़ित महिलाओं को शीघ्र और प्रभावशाली उपचार देना अत्यंत आवश्यक है।

एफसीएम अन्य थेरेपी की तुलना में अधिक सुरक्षित

विभागाध्यक्ष डॉ.रेनू गुप्ता ने बताया कि एफसीएम थेरेपी की खासियत हैं, जिससे शरीर में आयरन की त्वरित पूर्ति की जा सकती है, इससे हीमोग्लोबिन का स्तर जल्दी बढ़ता है। यह अन्य आयरन थेरेपी की तुलना में अधिक सुरक्षित और कम दुष्प्रभावों वाली है। अक्सर एक ही खुराक से अच्छा सुधार देखने को मिलता है, जिससे गर्भवती महिला की ऊर्जा, स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति में तेजी से सुधार आता है। वहीं, समय रहते एनीमिया का उपचार करने से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता में भारी कमी आती है।

प्रतिमाह 300 यूनिट रक्त की पड़ती जरूरत

डॉ.रेनू गुप्ता ने बताया कि देश में रक्त की उपलब्धता सीमित है और स्वैच्छिक रक्तदान की दर भी कम है। लगभग 60 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनिमिक होती हैं। औसतन प्रतिमाह विभाग को 250 से 300 यूनिट रक्त की आवश्यकता एनिमिक गर्भवती महिलाओं के इलाज के दौरान में पड़ती है। एफसीएम थेरेपी न केवल माताओं के जीवन की रक्षा करती है, बल्कि मूल्यवान रक्त संसाधनों की भी बचत करती है।

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