प्रयागराज : आपराधिक मामलों में अस्थिकरण या अन्य चिकित्सीय परीक्षणों द्वारा आयु निर्धारण उचित

प्रयागराज : आपराधिक मामलों में अस्थिकरण या अन्य चिकित्सीय परीक्षणों द्वारा आयु निर्धारण उचित

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों में लाभकारी कानूनी परिणाम प्राप्त करने के उद्देश्य से अभियुक्तों द्वारा जन्म तिथि में हेरा-फेरी करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किशोर होने का दावा करने वाले व्यक्ति की आयु का निर्धारण मुख्यतः दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर किया जाना चाहिए और अगर ऐसा करना संभव न हो तो अस्थिकरण या अन्य चिकित्सीय आयु निर्धारण परीक्षण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत उचित आयु सत्यापन करने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ढिलाई की भी आलोचना की। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में कमी से न केवल न्याय में देरी होती है, बल्कि किशोर न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है। कोर्ट ने उपरोक्त संदर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिए, जैसे-आयु निर्धारण के लिए प्रस्तुत दस्तावेजों के कठोर सत्यापन हेतु किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत तंत्र विकसित करने के साथ -साथ अधिकारियों को प्रशिक्षित करने का भी निर्देश दिया है।

इसके अलावा अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बलिया जिले में कम से कम एक रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति या प्रतिनियुक्ति के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा तत्काल कदम उठाए जाने की भी बात कही। उक्त आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकलपीठ ने अमरजीत पांडेय की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। याची के खिलाफ बीएनएस की विभिन्न धाराओं और पोक्सो अधिनियम की धारा 3/4(2) के तहत मामला दर्ज कराया गया था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि याची शिकायतकर्ता की 16 वर्षीय बेटी को बहला-फुसलाकर भगा ले गया था, जबकि आरोपी का दावा है कि कथित पीड़िता 18 वर्ष की बालिग लड़की है, जो अपने माता-पिता द्वारा डांटे जाने के बाद अपनी मर्जी से उसके साथ घर से चली गई थी।

कोर्ट ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बलिया द्वारा कोर्ट के पूर्व आदेशों का पालन न किए जाने पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि अनुपालन हलफनामे में दिए गए कथन दर्शाते हैं कि अधिकारीगण हाईकोर्ट के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इससे अधिकारियों का लालफीताशाही रवैया स्पष्ट झलकता है। हालांकि चिकित्सा अधिकारी द्वारा कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने संबंधित थाना प्रभारी को कई पत्र लिखे, लेकिन पीड़िता को परीक्षण हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया। अंततः 5 मार्च 2025 को उसकी एक्स-रे रिपोर्ट सीएमओ कार्यालय भेजी गई, लेकिन पीड़िता के हिमाचल प्रदेश चले जाने के कारण सीएमओ ने हड्डी परीक्षण रिपोर्ट देने से मना कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने पीड़िता को एक और तारीख पर सीएमओ के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा, लेकिन पीड़िता का हड्डी परीक्षण नहीं हो सका। कोर्ट ने इस लापरवाही पूर्ण रवैये को निंदनीय माना और पीड़िता की उम्र दर्शाने वाले किसी भी दस्तावेजी साक्ष्य की अनुपलब्धता में जमानत याचिका स्वीकार कर ली।

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