प्रयागराज : सरफाईसी एक्ट के तहत बैंक की कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण न होने पर कोर्ट का हस्तक्षेप से इनकार
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बैंक द्वारा शुरू की गई वसूली कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते हुए माना कि कोर्ट को सरफाईसी अधिनियम, 2002 से संबंधित मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि बैंक द्वारा की गई कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध या दुर्भावनापूर्ण न हो।
कोर्ट ने बताया कि सरफाईसी अधिनियम की धारा 13(4) बैंक जैसे सुरक्षित ऋणदाता को धारा 13(2) के तहत नोटिस की तारीख से 60 दिनों के भीतर देनदारियों के निर्वहन में चूक के मामले में उधारकर्ता के खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देती है। वर्तमान मामले में बैंक द्वारा सरफाईसी अधिनियम की धारा 13(4) के तहत शुरू की गई कार्यवाही को दुर्भावनापूर्ण न मानते हुए इसे रद्द करने की मांग वाली मेसर्स केसी इंटरनेशनल सिचुएट और दो अन्य की याचिका को न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने खारिज कर दिया।
याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सरफाईसी अधिनियम की धारा 13(3ए) के तहत याची द्वारा उठाई गई आपत्ति पर बैंक द्वारा धारा 13(4) के तहत कार्यवाही करने से पहले निर्णय नहीं लिया गया था। कोर्ट ने याचिका के साथ दाखिल दस्तावेजों के आधार पर पाया कि आपत्ति पर आदेश पारित कर उसे याचियों को डाक के माध्यम से भेजा गया, लेकिन याचियों पर डिलीवरी का प्रयास असफल रहा था, क्योंकि सेवा रिपोर्ट के अनुसार उनके आवास का दरवाजा बंद था।
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी पाया कि याचियों को धारा 13(4) के तहत नोटिस प्राप्त हुए और उन्होंने नोटिस के खिलाफ ऋण वसूली न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया था। डीआरटी के समक्ष उनके आवेदन लंबित रहने के दौरान उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी और हाई कोर्ट के समक्ष दाखिल याचिका में उन्होंने यह नहीं बताया कि वे पहले ही डीआरटी से संपर्क कर चुके हैं।अब ऋण वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष धारा 13(4) नोटिस को चुनौती देने के बाद याचियों को इस न्यायालय के समक्ष सरफाईसी अधिनियम की धारा 13(3ए) के तहत पहले की कार्यवाही को उठाकर एक ही समय में दो नावों पर सवार होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
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