World Thalassemia Day 2025 : कुंडली नहीं, शादी से पहले कराएं थैलेसीमिया टेस्ट, जेनेटिक बीमारियां बच्चों को नहीं होंगी ट्रांसफर
लखनऊ, अमृत विचार। जिस प्रकार से शादी से पहले कुंडली का मिलान कराया जाता है ठीक उसी तरह थैलेसीमिया (एचबीएनसी) की जांच भी करानी जरूरी होती है। जागरुकता से ही इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। क्योंकि, थैलेसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह बीमारी होती है। अगर किसी मरीज की जांच में रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो वह चिकित्सक से परामर्श कर सकता है। आगे का इलाज भी करवा सकते हैं। यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. निशांत वर्मा ने विश्व थैलेसीमिया दिवस पर साझा की। उन्होंने बताया थैलेसीमिया एक स्थायी आनुवांशिक रक्त विकार है जिसमें लाल रक्त कणों में हीमोग्लोबिन नहीं बनता है और शरीर में एनीमिया यानि खून की कमी हो जाती है। यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है।
हर साल 50 हजार बच्चे ग्रसित
डॉ. निशांत के मुताबिक तीन से चार फीसद माता-पिता इसके वाहक हैं और देश में हर साल लगभग 50 हजार बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। हर साल 10,000 से 15,000 बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से चार या छह महीने में नजर आते हैं। कुछ बच्चों में पांच से 10 साल के मध्य दिखाई देते हैं। त्वचा, आंखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं, यकृत बढ़ने लगते हैं, आंतों में विषमता आ जाती है, दांतों को उगने में कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है। थैलेसीमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है। कम गंभीर अवस्था में पौष्टिक भोजन और व्यायाम बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
गर्भवती महिलाएं रखें खास ख्याल
KGMU की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ प्रो. सुजाता देव बताती हैं कि महिला या पुरुष यदि कोई भी एक या दोनों ही थैलेसीमिया से पीड़ित है तो महिला को गर्भधारण करने में समस्या आ सकती है। पुरुषों में थैलीसीमिया के कारण इनफर्टिलिटी की समस्या होती है, क्योंकि, जननांगों में आयरन एकत्र हो जाता है। रोग से बचने के उपाय हैं कि शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाएं, नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचें, गर्भधारण से चार महीने के अन्दर भ्रूण की जांच करवाएं। थैलेसिमिया से ग्रसित गर्भवती उच्च जोखिम खतरे की गर्भवस्था की श्रेणी में आती है और ऐसे में मृत बच्चे का जन्म, समयपूर्व बच्चे का जन्म, प्रीएक्लेम्पशिया और गर्भ में बच्चे की वृद्धि रुकना (इंट्रायूट्राइन ग्रोथ रिस्ट्रिक्शन) जैसी स्थितियों की सम्भावना रहती है।
आखिरी इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट
राजधानी में तीन बड़े मेडिकल संस्थान है। जिनमें से सिर्फ एसजीपीजीआई में ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है। केजीएमयू और लोहिया में फिलहाल बोन मैरो ट्रांसप्लांट नहीं हो रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि जल्द ही इन दोनों संस्थानों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू होगा। इसको लेकर के अलग से बिल्डिंग बनाई जा रही है जहां पर इसका विभाग होगा। केजीएमयू के डॉ. निशांत के मुताबिक आने वाले कुछ महीनो में कहा जा सकता है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट यहां भी शुरू होगा। फिलहाल इन दोनों ही मेडिकल संस्थान से मरीज को बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए एसजीपीजीआई रेफर किया जाता है।
6 साल तक के बच्चों में बोन मैरो प्रत्यारोपण 90 फीसदी तक सफल
PGI के हिमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राजेश कश्यप ने बताया कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे बोन मैरो प्रत्यारोपण के बाद सामान्य बच्चों की तरह जीवन यापन कर सकते हैं। प्रत्यारोपण जितनी जल्दी होगा, उसकी सफलता दर उतनी अधिक होगी। छह साल के भीतर प्रत्यारोपण होने पर 90 फीसदी तक सफल है। पीजीआई के हिमेटोलॉजी विभाग में कई बच्चों का सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है।
बच्चों में तीन माह बाद पकड़ में आती है बीमारी
डॉ. अर्चना श्रीवास्तव ने बताया थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है। इसकी पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है। इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून की कमी होने लगती है। सही वक्त पर उपचार न मिलने पर जान भी जा सकती है। इसमें खून बनने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। किसी भी सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है। देश में हर साल 10,000 से अधिक बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ पैदा होते हैं, और फिर भी सार्वजनिक जांच उतनी व्यापक नहीं है जितनी होनी चाहिए।
थैलेसीमिया के लक्षण
-थकान और कमजोरी जो आराम से दूर नहीं होती
-त्वचा का रंग पीलापन लिए हुए
-बच्चों में बार-बार संक्रमण की समस्या
-बच्चों में विकास देर से होना
-बढ़ी हुई तिल्ली या यकृत (अक्सर शारीरिक परीक्षण के दौरान पाया जाता है)
-हल्की गतिविधि के बाद सांस फूलना
-गंभीर मामलों में सीने में दर्द या अनियमित दिल की धड़कन
-कम ऑक्सीजन स्तर के कारण सिरदर्द
- त्वचा, आँखें, जीभ और नाखून पीले पड़ना, प्लीहा, लीवर का बढ़ना
- बच्चों के दांत उगने में दिक्कत और विकास का रुकना
बचाव के लिए यह अपनाएं उपाय
-शादी के पहले थैलेसीमिया जांच अवश्य करवाएं
-डॉक्टर की सलाह पर थैलेसीमिया पॉजिटिव से शादी करें
-रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नियमित टीकाकरण करवायें
- यदि कोई मरीज थैलेसीमिया से पीड़ित है तो वह अपना ख्याल रखें और समय पर समुचित इलाज लें
- अपनी दिनचर्या और खान-पान का ख्याल रखें.
कहां कितने पंजीकृत मरीज
| संस्थान | थैलेसीमिया मरीज |
| KGMU | 390 |
| SGPGI | 768 |
| लोहिया संस्थान | 263 |
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