कानपुर : घर के भीतर की हवा भी बच्चों के लिए हो सकती है खतरनाक
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में डॉक्टरों ने दी जानकारी
कानपुर : दूषित हवा में सांस लेने के कारण उनके फेफड़ों में सूजन और इंफेक्शन हो सकता है, जो काफी खतरनाक है। इसलिए बच्चों को खासकर 1-5 वर्ष की उम्र के बच्चों को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए उनका खास ध्यान रखना जरूरी है। क्योंकि वयस्कों की तुलना में बच्चे ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं। इस कारण हवा में मौजूद प्रदूषण बच्चों के शरीर में ज्यादा मात्रा में प्रवेश करते हैं। यहां तक घर के भीतर की हवा भी बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है, इसलिए घर के हर एक चीज की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह जानकारी डॉ.राज तिलक ने दी।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में गुरुवार को विश्व पर्यावरण दिवस पर भारतीय बाल रोग एकेडमी ने वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया। उद्देश्य बच्चों व किशोरों के स्वास्थ्य की रक्ष के लिए पर्यावरण संरक्षण की भावना को बढ़ावा देना रहा। एकाडमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ.राज तिलक ने बताया कि वायु प्रदूषण में शामिल नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड व पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5/पीएम10) जैसे हानिकारक कण बच्चों के फेफड़ें के विकास को धीमा करते हैं, इससे अस्थमा, बार-बार खांसी, जुकाम, निमोनिया और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां हो सकती है। जबकि जल प्रदूषण में शामिल सीसा, आर्सेनिक और प्लास्टिक माइक्रो पार्टिकल्स से दूषित जल के सेवन से बच्चों का विकास रूक सकता है।
पेट के रोग, त्वचा की एलर्जी और यहां तक की मानसिक विकास में बाधा जैसे दुष्प्रभाव देखें जा रहे हैं। बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ.शैलेंद्र कुमार गौतम ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण भी बच्चों के लिए काफी नुकसानदायक है। तेज आवाजें बच्चों के मानिसक संतुलन को बिगाड़ने का काम करती हैं, इससे मुख्य रूप से नींद में बाधा उत्पन्न होती हैं, सिर में दर्द, पढ़ाई में ध्यान न लगना और लंबे समय तक सुनने से सुनाई देने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। ऐसे में बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एकेडमी की अध्यक्ष डॉ.रोली श्रीवास्तव ने कहा कि हमें धरती को बच्चों के रहने लायक बनाना है तो प्रतिदिन एक पेड़ लगाना होगा।
मानसिक और भावनात्मक प्रभाव पर पड़ता असर
डॉ.यशवंत राव ने बताया कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों में चिड़चिड़ापन, अवसाद, एकाग्रता की कमी और सामाजिक अलगाव की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय तनाव मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करता है, जिससे भविष्य में न्यूरोलॉजिकल विकारों का खतरा बढ़ जाता है। बताया कि घर के भीतर की हवा भी बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है, खासकर अगर उसमें धुआं, धूल, कीटनाशक या एयर फ्रेशनर्स का अत्यधिक प्रयोग हो। इससे एलर्जी, सांस की तकलीफ और आंखों में जलन भी हो सकती है।
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