कानपुर : आईआईटी में बढ़ेंगे स्टार्टअप, तेज होंगे शोध 

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Published By Vinay Shukla
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आईआ्रईटी कानपुर और आईआईआईटी उना ने की साझेदारी, अकादमिक और अनुसंधान क्षेत्र में मिलकर करेंगे सहयोग 

कानपुर, अमृत विचार : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (आईआईटी कानपुर) और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान उना (आईआईआईटी उना) के बीच साझेदारी की। यह साझेदारी संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं, स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अन्य अकादमिक गतिविधियों के संचालन के लिए होगी। समझौता होने से आईआईटी कानपुर में स्टार्टअप की संख्या में इजाफा और शोध में तेजी आ सकेगी।

समझौते पर आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल और आईआईआईटी उना के निदेशक प्रो. मनीष गौर ने हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर आईआईटी कानपुर के अनुसंधान एवं विकास के कार्यवाहक डीन, प्रो. कुमार वैभव श्रीवास्तव भी उपस्थित रहे। समझौते के तहत दोनों संस्थान कई सहयोगी गतिविधियों में भाग लेंगे। इसमें संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएं, जिनमें दोनों संस्थानों के शिक्षक और छात्र उभरती तकनीकों के क्षेत्रों में मिलकर कार्य करेंगे, जिससे अंतविषय (इंटरडिसिप्लिनरी) नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। यह साझेदारी स्टार्टअप्स और उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करेगी, जिसमें इनक्यूबेशन, मेंटरशिप और नवाचार आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा कि आईआईआईटी उना के साथ यह सहयोग उच्च शिक्षा में नवाचार और उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में एक और कदम है। हमें आशा है कि यह साझेदारी अकादमिक और तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करेगी और देश के नवाचार परिदृश्य में एक सार्थक योगदान देगी। यह सहयोग कौशल विकास और शैक्षणिक समृद्धि को बढ़ावा देगा। इसके अंतर्गत संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम, संकाय विकास पहलों और छात्र कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा।

इसके साथ ही शैक्षणिक आदान-प्रदान, अतिथि व्याख्यान, संयुक्त सेमिनार और पाठ्यक्रम विकास भी किए जाएंगे। इसका उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों में तकनीकी दक्षता और क्षेत्रीय विशेषज्ञता का निर्माण करना है। साझेदारी का एक प्रमुख उद्देश्य उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं और नवाचार केंद्रों का विकास करना है, जिन्हें दोनों संस्थान मिलकर स्थापित करेंगे। आईआईटी कानपुर और आईआईआईटी ऊना साझा आधारभूत संरचना और अनुसंधान उपकरणों, सुविधाओं और शैक्षणिक संसाधनों तक पारस्परिक पहुँच प्राप्त करेंगे, जिससे दोनों संस्थानों की अनुसंधान और विकास क्षमताएं और अधिक मजबूत होंगी।

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